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________________ दिया । व्याध एक दिन अपने पुत्र और भाई को साथ ले कर शिकार के लिए बाहर गया ! जाते समय अपनी कन्या चापा को इस आजीवक सन्यासी को सेवा सुश्रूषा का भार सौंप गया किन्तु सन्यासी ने व्याध कन्या के रूप पर मुग्ध होकर मृत्यु प्रण किया कि जब तक मैं इसे प्राप्त न कर लूगा तब तक अन्न-जल ग्रहण न करूंगा व्याध शिकार से जब वापिस आया तब समस्त वृतांत सुन कर इस ओपक के साथ चापा का विवाह कर दिया। ओपक ने भी व्याध के शिकार के माँस को उठान और क्रिी करने का भार अपने जिम्मे ले लिया । एक वर्ष बाद ओपक के सुभद्र नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। एकदा पुत्र सुभद्र रोने लगा, तब चापा "ओ आजीवक के पुत्र ! ओ म.स उठाने वाले के पुत्र !' रा नहीं। ऐसा संबोधन करते हुए उसे चुप करा रही थी। यह बात सुन कर ओपक के मन में अत्यन्त लज्जा उत्पन्न हुई तथा वह किसी की अनुनय विनय की कुछ भी परवाह न करते हुए बंकहार जनपद का परित्याग कर मध्यदेश में चला गया और उसने श्रावस्ती के निकट जेतवन में पहुँच कर बुद्ध देव का शिष्यत्व ग्रहण किया। चापा भी उस के थोड़े समय बाद पुत्र को अपने पिता के पास (अर्थात् पुत्र के नाना के पास) छोड़ कर श्रावस्ती जा कर बौद्धसंघ में जा मिली तथा भिक्षुणियों में विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की। उस के द्वारा रचित गाथाएं बौद्ध थेरी गाथा समूह में उपलब्ध होती हैं एवं आज भी हम उन्हें पढ़ सकते हैं। इस कथा मे ज्ञात होता है कि मगध और बंकाहार जनपदों में उस समय आजीवकों का अभाव नहीं था। बंकाहार जनपद के संबन्ध
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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