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________________ तमलूक अथवा ताम्रलिप्ति थी। जो हो ; जैन कल्पसूत्र से ज्ञात होता कि वर्धमान ने साधारणतः चम्पा, वैशाली, मिथिला, राजगृह, श्रावस्ती इत्यादि जनपदों की राजधानी में ही वर्षाकाल व्यतीत किये थे। राढ़ के विषय में भी यदि ऐसा ही हो तो कहना होगा कि कोटिवर्ष के निकटवर्ती भूखंड में ही उस समय बत्रभूमि तथा तदन्तर्गत पणित भूमि नाम से परिचित थी। अर्थात् वर्तमान दिनाजपुर जिला उस समय परिणत भूमि अथवा वज्रभूमि के अन्तर्गत था । परन्तु इस में निःसंशय रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता कि इस की अवस्थिति किस भूमि प्रदेश में थी। क्योंकि विद्वान लोग अभी तक इस का निश्चय नहीं कर पाये । हम पहले लिख आये हैं कि उत्तर काल में कोटिवर्ष के नाम से जैन संप्रदाय की एक शाखा का नामकरण हुआ था एवं पौंड्रवर्धन में अनेक निर्ग्रथों तथा अजीवकों का वास था । इस से यह धारणा होती है कि पणित (वनभूमि) में वर्धमान और गोसाल ने विहार किया था। बह तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अद्वियगामं णीसाए पढमं अंतरावासे वासावासं उवागए, चंपं च पिहचंपं च जोमाए तो अंतरावासे वासावासं उवागए, वेसालि गरिं वाणियगामं च णीसाए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवागए, रायगिंहं णगरं णालंदं च बाहिरियं णीसाए चउद्दम अंतरावासे वासावासं उवागए, छ महिलाए, दो भद्दियाए, एग अालाभियाए, ए गं सावत्थीए, एगं पणिय भूमिए, एगं पावाए मज्झिमाए, हत्थिपालस्स रगणो रज्जुग समाए अपच्छिम अतरावासं वासावसं उवागए ॥१२२।। ( कल्मसूत्र व्या० ६) (अनुवादक)
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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