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________________ ( ८६ ) देसासरे, खडग देशावरे नगर धूलेवमां तखत राजे, झगमग ज्योत थी ज उद्योतथी जगत्रना तातनी सोभा छाजे ॥सा०॥२॥ भरीय कचोलडां, धन सारजे रुवढां, केसरां तणां तिहां कीच माचे, धूप धूमां धगे, दीपक जोत्य फगें, फुल टोडरतणां सुगंध आचें ॥ सा० ॥ ३ ॥ नोबत गडगडे, शब्द गयणे अडे, तालक साल विशाल बाजें, आरती चिहूं गती वारती सारती धारती भव्यने मोक्ष राजे ॥ सा० ॥ ४ ॥ भवि मन जे धरे, प्रभु नामथी सुख वरे, पुत्र लच्छी धेरे धन्य कोटी, रोग ने सोग ज्वर दुख दूरे भय हरे, दरसने पुरवे आस मोटी ॥ सा० ॥५॥ विषम घाटा घणां, पाहण पाणीतणा, खाखरां भाखरां भीत लागे, चोर धाडा फरे, वाघ सिंह तहां चरे, नाथना नामथी दूर भागे ॥ सा० ॥ ६ ॥ दूरथी आवियो मुझ मन भावीयो, धाइयो तुं प्रभु चित्त मांहे, प्राजथी काज जिनराज सवि सिधला, तारीये तारक ग्रहीय बांहे ॥ सा०॥७॥ ऋषभ राजातणां गुण अनंता घणां, नही मणां सांचथी सहू भराचें, गच्छपति हरिना, वल्लीपत सिरनां जैन धर्म पामियो तेह सांचे ॥ सा० ॥ ॥ ८॥ विबुध चूडामणी, किरती जस घणी, अमर केसर दोय भ्रात जोडी, खुशाल कपूरविजय शिष्य प्रभुने भजे, रूप प्रणमे, सदा हाथ जोडी ॥ सा० ॥ ६ ॥ छंद संपूर्ण ॥ नाभी नृपति कुल कमल दिवाकर मरुदेवा उर हंस जनमपुरी वनीता भली, धन धन प्रभु इष्याग वंश ॥१॥ साहिबजी
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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