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॥ अथ आदिनाथजी का अष्टक लिख्यते ॥ प्रमोद रंग कारणी, कलारव धारणी, महातमीय हारिणी, सु ज्योतिरूप भारती ॥ त्रैलाक्य मध्य राजती, सुज्ञान बुद्धि छाजती, सुभ्रात को निवाजती, दुरत दुख वारती, नमांमि मात सर्वदा, ददाति सुख संपदा, सौ वंदियौ गौतम सदा, देवाधिदेव गाइयै, ताध्यायि रिद्धि पाइयै, विशुद्धभाव अनिके, सो मुगति हेत जानिकै, धूलेवगांव खडदेस आदिदैव ध्याइये, जु आदिदैव ध्याइये, जु आदिदैव ध्याइये. ॥ १ ॥ नाभीराय नंदनौ, दुरित कंद कंदनौ, सुकोट पाल छंदनौ, आनंदनो सुवंदनौ, इक्ष्वाक वंश मंडणौ, कंदर्प दर्प खंडनौ, वीलोल चित फंदनौ, सुकाम राग वारिणौ, सुभव्यजीव तारिणौ, विस्तारणो सुतीत रीत, प्रीतसुं
राहिए ॥ विशुद्ध || २ || प्रशांत रूप रणौ, कृतांत काल मारणौ, पाखंड मत गंजनौ, निरंजनौ सुरंजनौ, समप्रास पूरतौ, प्रताप तेज सोरतो, जगत्र में सराहियें ॥ विशुद्ध || ३ || छतीस पूण जेहनी, करंत सेव तेहनी, पूरंत आस मेहनी, मीलंत सुत गेहनी, सराज राजवी थरागवंद, बाज सुंदरा लहंत, ते मनोहरा, ज्यों वृष्टि शब्द मेहनी, नीसंत याद व्याधनी, लहंत ते समाघनी, अगाध बोध लाघनी, न गर्भवास आइये ॥ विशुद्ध || ॥ ४ ॥ कृपाल तुं दयाल है, तुं भक्तिप्रतिपाल है. तो बिना गोपाललाल औरतो जंजाल है, तुं विचित्र रूप है, तुं सर्व लोक भूप है, तुं सर्वथा अनूप है, तुं मोह काम को कुदाल है, तुं