________________
पांचवां खण्ड ] दूसरा अध्याय : लौकिक देवी-देवता ४३५ पैर पकड़कर, अपने अपराधों की क्षमा माँगने लगा । इस समय से प्रत्येक नगर में शिवलिंग की पूजा प्रारम्भ हुई।
स्कंद और मुकुन्द की पूजा की भाँति शिवपूजा भी महावीर के समय प्रचलित थी। ढोंढसिवा की पूजा को जाती थी। किसो पर्वत के निझर में शिव की प्रतिमा विद्यमान थी। पत्र, पुष्प और गूगल से उसको पूजा की जाती, उसका सिंचन और उपलेपन किया जाता, तथा हस्तिमद से उसे स्नान कराया जाता। काष्ठनिर्मित शिव देवता का उल्लेख मिलता है।"
वैश्रमणमह वैश्रमण अथवा कुबेर को उत्तर दिशा का लोकपाल तथा समस्त माल-खजाने का कुबेर कहा गया है। उसके तैरते हुए प्रासाद को गुह्यक वहन करके ले जाते हैं, जहाँ वह रत्नों को धारण किये स्त्रियों से परवेष्टित रहता है। वह दैदीप्यमान कुण्डल धारण करता है, अत्यन्त धनाढ्य है, दिव्य आसन और पादपीठ का धारक है, तथा नन्दनवन और अलकानलिनी से आनेवालो सुखद समीर का वह उपभोग करता है। अलका कैलाश पर्वत पर स्थित है। वैश्रमण यक्ष, राक्षस और गुह्यकों का अधिपति कहा जाता है। जैनसूत्रों में वैश्रमण को यक्षों का अधिपति और उत्तर दिशा का लोकपाल कहा है।
नागमह ब्राह्मण पुराणों के अनुसार, सपं देवता सामान्यतया पृथ्वी के १. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १७५ आदि। २. आवश्यकनियुक्ति ५०६ ।।
३. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३१२ । बृहत्कल्पभाष्य ५.५९२८ में ढोंढशिवा को अचित्त बिंब का उदाहरण बताया गया है। हिंगुशिव के कथानक के लिए देखिए दशवकालिकचूर्णी पृ० ४७ ।
४. बृहत्कल्पभाष्यपीठिका ८०४ की चूर्णी, फुटनोट। ५. बृहत्कल्पभाष्य ३.४४८७ । ६. हॉपकिन्स, वही, पृ० १४२-४८। ७. जीवाभिगम ३, पृ० २८१ ।
८. आजकल नागा जाति के लोग असम और मणिपुर के बीच में रहते हैं । नागाओं के सम्बन्ध में विशेष जानने के लिए देखिए हार्डी, मैनुअल ऑव बुद्धिज्म, पृ० ४५; तथा राइस डैविड्स, बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० २२०, आदि;