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२३६ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड
सम्बन्धी और मित्र अनेक स्वजन और सम्बन्धियों का उल्लेख जैन आगम ग्रन्थों में मिलता है । मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों का उल्लेख यहाँ किया गया है।' ___ जैसे-जैसे पिता वयोवृद्ध होता जाता, परिवार की देखरेख का बोझ ज्येष्ठ पुत्र पर पड़ता। लोग अपने पुत्रों को घर का भार सौंपकर दीक्षा धारण करते। ___ जन्म, विवाह, मरण तथा विविध उत्सवों के अवसर पर स्वजनसंबंधियों को निमंत्रित किया जाता। महावीर भगवान ने जब जन्म लिया तो उनके माता-पिता ने अपने अनेक मित्रों, संबंधियों, स्वजनों
और अनुयायियों को आमंत्रित किया और खूब आनन्द मनाया। चम्पा के निवासी दो ब्राह्मण भाइयों का उल्लेख आता है; वे क्रम-क्रम से एक-दूसरे के घर भोजन किया करते थे।
बालक-नन्हे बाल-बच्चे घर को शोभा माने जाते थे। जो माताएँ बच्चों को जन्म देतीं, उन्हें खिलाती, पिलाती, उन्हें स्तनपान करातीं, उनकी तोतली बोली सुनतीं और अपनी गोद में लेकर उनके साथ क्रोड़ा करतीं, वे धन्य समझी जाती। मातायें अपने बालकों के मालिश करती, उबटन लगाती, गर्म पानी से स्नान कराती, पैरों में आलता लगाती, आँखों में अंजन डालती, तिलक करती, ओष्ठ रचातों, हाथों में कंकण पहनाती तथा उनके खेलने के लिये खेल और खाने के लिये भोजन देती । वन्ध्या (निन्दू ) माताओं को अच्छा नहीं समझा जाता था । अतएव सन्तान प्राप्ति के लिए वे इन्द्र, स्कंद, नाग, यक्ष आदि अनेक देवी-देवताओं की पूजा-उपासना करती, उन्हें प्रसाद चढ़ातीं और उनका जीर्णोद्धार कराने का वचन देतीं।" भद्रिलपुर के नाग गृहपति की भार्या सुलसा बचपन से ही हरिणेगमेषी की पूजा
१. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ५१ । २. कल्पसूत्र ५.१०४ । ३. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १६२ । ४. निरयावलियाश्रो ३, पृ० ५१ ।
५. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ४६; श्रावश्यकचूर्णी, पृ० २६४; देखिये अवदानशतक १, ३, पृ० १४ ।।