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श्री अमितगति श्रावकाचार
नाविकाचार
अर्थ- ताके पीछे महात्मा पुरुष वेदकसम्यक्त्वकौं प्राप्त होय है, अर कोई महात्मा पुरुष जाकें मुक्ति आसन्न है सो क्षायिकसम्यक्त्वकौं प्राप्त होय है ॥४३॥
आगें सम्यक्त्व होने का विशेष स्वरूप कहैं हैं;लब्धशुद्धपरीणामः, कल्मषस्थितिहानिकृत । अनन्तगुणया शुद्ध या, वर्द्धमानः क्षणे क्षणे ॥४४॥ प्रकृतीनामशस्तानामनुभागस्य खर्वकः । वर्द्ध कः पुनरन्यास, युक्तायुक्तविवेचकः ॥४५॥ स्थितऽतःकोटिकोटिकस्थितिके सति कर्मणि । अथाप्रवृत्तिकं नाम, करणं कुरुते पुरा ॥४६॥ अपूर्व करणं तस्मात्तस्मादप्यनिवृत्तिकम् । विधाति परीणामः, शुद्धकारी क्षणे क्षणे ॥४७॥
मर्थ-पाया है विशुद्ध परिणाम जानें, बहुरि पापप्रकृतिनिकी स्थितिकी हानि करनेवाला समय समय अनन्तगुणशुद्धि करि वर्द्धमान होता सन्ता ॥४४॥
अप्रशस्त प्रकृतिनिके अनुभाग का घटावनेवाला बहरि अन्य प्रशस्त प्रकृतिनिके अनुभागकौं बढ़ावनेवाला योग्य अयोग्य का विवेकवान् ॥४५॥
ऐसा जीव अन्तः कोटाकोटी सागर प्रमाण है स्थिति जाकी ऐसे कर्म को स्थिति होतेसन्तै प्रथम अधःप्रवृत्तिनाम करणकौं करै है ॥४६॥
बहुरि ता पीछे समय समय परिणामनिकी शुद्धि करता अपूर्वकरण करै है ता पीछे अनिवृत्तिकरणकौं करै है ॥४७॥
भावार्थ-उपशमसम्यक्त्वके अन्तर्मुहूर्त पहले अधःकरण अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण ऐसे तीन करण होय हैं । इनका विशेष स्वरूप श्रीमद्गोमट्टसारविर्षे कह्या है तहांतें जानना ।