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श्री अमितगति श्रावकाचार
(काव्य) यावत्तिष्ठति शासनं जिनपतेः पापापहारोद्यतम्, यावद्ध्वंसयते हिमेतररुचिविश्वं तमः शार्वरम् । यावद्धारयते महीघ्रधरवचित्त वातत्रयी विष्टपं, तावच्छास्त्रमिदं करोतु विदुषामभ्यस्यमानं मुदम् ॥
अर्थ-पापके हरनैमें उद्यमी जो जिनराजका मत सो जहां ताई तिष्ठ है अर जहां ताई सूर्य रात्रि सम्बन्धी सकल अन्धकारकौं हरै है । बहुरि जहां ताई पर्वतनिकरि जड़ित जो लोक ताहि तीनौं वातवलय धार है तहां ताई यह श्रावकाचार शास्त्र अभ्यास किया सन्ता ज्ञानीजीवनिकौं आनन्द करहु; ऐसे आचार्यने आशीर्वाद दिया है ॥६॥
इति ग्रन्थकत : प्रशस्तिः ।