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________________ . २६४ ] श्री अमितगति श्रावकाचार अर्थ -- जो शुश्रुषा करिकें संगमी मुनीनकौं दान देय है सो यहु पंडितनि करि निरन्तर जैसें गुरुनिकी शुश्रूषा कीजिए तैसें ताकी शुश्रूषा कीजिए है ॥५७॥ प्राहत्य दीयते दानं साधुभ्यो येन सर्वदा । आदरेणैष लोकेन निधानमिव गृह्यते । ५८ ॥ अर्थ- जो पुरुष करि आदर सहित साधुनके अर्थ सदा दान ये है सो यहु पुरुष लोककरि निधानकी ज्यौं आदर सहित ग्रहण कीजिए है ॥ ५८ ॥ पूजापरायणः स्तुत्त्वा यो यच्छति महात्मनाम् । त्रिदशैस्तीर्थकारीव स्तावं स्नावं स पूज्यते ॥५६॥ अर्थ - जो पुरुष पूजाविषै तत्पर स्तुति करिकैं साधु पुरुषनिकौं दान देय है सो पुरुष देवनि करि जैसें तीर्थंकर देवकौं पूजिए तैसें स्तुति करि करिकै पूजिए है ||५|| यद्यद्दानं सतामिष्टं तपः संयमपोषकम् । तत्तद्वितरता भक्त्या प्राप्यते फलमीक्षितम् ॥ ६०॥ अर्थ - जो जो दान तप संयमका पुष्ट करनेवाला सत्पुरुषनिनें मान्या है सो सो दान भक्ति सहित देता जो पुरुष ताकरि वांछित फल पाइए है ॥ ६० ॥ दानानीमानि यच्छन्ति स्तोकान्यपि महाफलम् । बीजानीव बटादीनां निहितानि विधानतः ॥ ६१ ॥ अर्थ - पूर्वं कहे ते दान विधान सहित थोड़े भो महाफलकौं दे हैं, जैसे बड़ आदि वृक्षनिके बीज हैं ते विधानते बोए भए वड़े फलकौं देय हैं ॥ ६१ ॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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