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________________ १७६ ] श्री अमितगति श्रावकाचार आगें परिग्रह त्याग प्रतिमाकौं कहैं हैं -- यो रक्षणोपार्जननश्वरत्वैर्ददाति, दुःखानि दुरुत्तराणि , विमुच्यते येन परिग्रहोऽसौ, गीतोऽपसंगैरपरिग्रहोऽसौ ॥७॥ अर्थ-जो परिग्रह रक्षा करना उपार्जन करना विनसना दुःखतें उतरे जाय ऐसे दुःख निकौं देय है, ऐसा यह परिग्रह जाकरि त्यागिए सो यह परिग्रह रहित जे मुनींद्र तिन करि अपरिग्रह क ह्या है ॥७॥ अर्थ-आरम्भ की रचना करि हीन है चित्त जाका अर धर्मका अनुमोदन करनेवाला ऐसा जो पुरुष पापकार्यनि विर्षे हिंसकरूप मारी समान जो अनुमति कहिए सलाह ताहि न देवै सो नाहीं अनुमति करनेवालेनिमैं प्रधान कहिए है। भावार्थ- पाप कर्मकी अनुमोदनाका त्याग करै सो अनुमति त्यागी दशम प्रतिमाधारी कहिए, ऐसा जानना ॥७६।। आगे उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाकौं कहै है यो वन्धुराबंधुरतुल्यचित्तो, गह्णाति भोज्यं नवकोटिशुद्धम् । उद्यिोष्टवर्जी गुणिभिः स गीतो, विभीलुकः संसृति मातुधान्याः ॥७७॥ अर्थ -जो पुरुष भले बुरे आहार मैं समान है चित्त जाका ऐसा जो पुरुष नवकोटि शुद्ध कहिए मन, वचन, काय करि करया नाहीं कराया नाहीं करे हुएकौं अनुमोद्या नाहीं ऐसे आहारकौं ग्रहण करै सो उद्दिष्ट त्यागी गुणवन्तनिनै कह्या है, कैसा है, सो संसाररूप राक्षसीसैं विशेष भयभीत है ॥७७॥ ऐसे ग्यारह प्रतिमाका वर्णन किया। इहां संक्षेप ऐसा हैं, जो मिथ्यात्व अर अनन्तानुबन्धी कषाय इनके उदयका अभाव तौ सम्यग्दर्शन होते ही भया । बहुरि अप्रत्याख्यानावरणके उदयके अभावतें देशविरतनामा
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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