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श्री अमितगति श्रावकाचार
__ अर्थ- सर्व सुखनिके स्थान जे बारह व्रत तिनहि जो आभूषणनिकी ज्यों धारै है ता पुरुषकौं आचार्य व्रती हैं हैं । कैसे हैं बारह व्रत पवित्र लक्ष्मी जो स्वर्ग मोक्षकी लक्ष्मी ताके प्राप्त करनेकौं समर्थ हैं, ऐसा जानना ॥६॥ आगै सामायिक प्रतिमाकौं कहै हैं :
रौद्रात मुक्तो भवदुःखमोची, निरस्तनिःशेषकषायदोषः । सामायिकं यः कुरुते त्रिकालं,
सामायिकस्थः कथितः सतथ्यम् ॥६६॥ अर्थ-आर्त रौद्र खोटे ध्यानान करि रहित अर संसार दुःखनिका त्यागनेवाला अर त्यागे हैं समस्त क्रोधादि कषाय जानें ऐसा जो पुरुष त्रिकाल सामायिककौं व.रै है सो पुरुष सत्यार्थ सामायिक विष तिष्ट्या कह्या है ॥६६॥ आगें प्रोषध प्रतिमाकौं कहैं हैं:--
मन्दीकृताक्षार्थ सुखाभिलाषः, करोति य: पर्वचतुष्टयेऽपि । सदोपवासं परकर्म मुक्त्वा ,
सः प्रोषधी शुद्धधियामभीष्ट: । ७०॥ अर्थ-मंद करी है इद्रिय विषय जनित सुखकी अभिलाषा जानें ऐसा जो पुरुष पर्वचतुष्टय कहिये एक मासकी दोय अष्टमी दोय चतुर्दशी इन चारिनि विष आरम्भ छोड़करि निश्चयरि सदा उपवास करें है सो प्रोषध प्रतिमाधारी शुद्धबुद्धीनके अभीष्ट वांछित है ।।७०॥ आगें सचित्तत्याग प्रतिमाकौं कहै हैं :--
दया चित्तो जिनवाक्यवेदी, न वल्भते किंचन यः सचित्तम् । अनन्यसाधारण धर्मपोषी, सचित्तमोची स कषायमोची ॥७१॥