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________________ १३४ ] श्री अमितगति श्रावकाचार - सर्वप्रकार त्याग पूर्वापर देख करि भाषित सूत्रके अर्थकौं निश्चयतें जान करि सो विशेषता करि करना योग्य है । भावार्थ-त्याग करना सो या प्रकार मेरे त्याग हे ऐसे विशेषणसहित पूर्वापर विचारकै अर सूत्र के अर्थकौं जान करि, बहुरि मत कदाच प्रतिज्ञा भंग होय ऐसैं मनमैं भय रख करि करना। बिना विचार करना योग्य नाही ॥ ३१ ॥ शक्तयनुसारेण वुर्धविरतिः सर्वापि युज्यते कर्तु। तामन्यथा दधानो भंगं, यति प्रतिज्ञायाः ॥ ३२॥ अर्थ-पंडितनि करि शक्ति अनुसार सर्व हो त्याग करना योग्य है, वहरि ता त्यागकौं अन्यथा कहिए शक्ति बिना ही करता जो पुरुष सो प्रतिज्ञा के भंगकौं प्राप्त होय है। भावार्थ-व्रत धारणमैं शक्ति छिपावनी नाही अर शक्ति सिवाय भी न करना ऐसा इहां कह्या है ॥ ३२ ॥ आगें मिथ्यादृष्टि जोव केई प्रकार हिंसा थाप हैं तिनका निराकरण करिए है केचिद्वदंति मूढा हंतव्या, जीवधातिनो जीवाः । परजीवरक्षणार्थ, धर्मार्थ पापनाशार्थम ॥ ३३ ॥ अर्थ-केई मूढ मिथ्यादृष्टि कहै हैं कि परजीवनको रक्षाके अर्थ वा धर्मके अर्थ वा पापके नाशके अर्थ जीवनके मारनेवाले जे हिंसक जीव ते मारने योग्य हैं तिनसें आचार्य कहैं हैंयुक्तं तन्वं सति हिंस्रत्वात्प्राणिनामशेषाणाम् । हिंसायाः कः शक्तो, निषेधने जायमानायाः ॥ ३४॥ अर्थ-ऐसा कहना युक्त नाही जाते या प्रकार माने सन्तै हिंसकपनेतें समस्त जीवनिकी उपजी जो हिंसा ताके निषेध करने विष कौन समर्थ है।
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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