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________________ ११०] श्री अमितगति श्रावकाचार ये पिवन्ति गरलं सुदुर्जरं, ते श्रयन्ति मरणं किमद्भुतम् ॥२३॥ अर्थ-जे पापके समूहका करनेवाला जो मांस ताहि भखें हैं ते तीव्र संसारके दुःखकौं प्राप्त होय हैं । इहां दृष्टांत कहैं हैं-जे पुरुष दुखतें है जरना उतरना जाका ऐसा जो विष ताहि पीवै हैं ते मरणकौं प्राप्त होय सो कहा आश्चर्य है। भावार्थ-मांसभक्षक संसार में भ्रमैं ताका अचरज नाही ॥२३॥ चित्र दुःखसुखदान , पंडिते, ये वदन्ति पिशिताशने समे। मृत्युजीवितविबर्द्ध नोद्यते, ते वदन्ति सदृशे विषामृते ॥२४॥ अर्थ-नानाप्रकारके दुःख अर सुख के देने में प्रवीण जे मांस अर भोजन तिनहिं समान कहै हैं ते मरण अर जीवन के वढावने विष उद्यमी जे विष अर अमृत तिनहि समान कहे हैं। भावार्थ-जे मांस खाना अर अन्न खाना समान कहै हैं ते विष अर अमृत समान कहै हैं । ते समान नाही जात मांस खाने में तो तीव्रराग है अर अन्न खानेमैं मन्द राग है तातें बड़ा भेद है ऐसा जानना ॥२४॥ जायते द्वितयलोक दुःखदं, भक्षितं पिशितमंगसंगिनाम् । भक्षितं द्वितयजन्मशर्मदं, जायतेऽशनमपास्त दूषणम् ॥२५॥ । अर्थ-जीवनि मांस खाय सन्ता इस लोक विर्षे अर परलोक विर्षे दुःखदायक होय है, अर दूषण रहित भोजन खाया भया इस लोक परलोक विर्षे सुखदायक होय है ॥२५॥ मांसमित्थमवबुध्य दूषितम्, त्यज्यते हितगवेषिणा त्रिधा ।
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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