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निगोद - मुक्ति
(राग - राखनां रमकड़ाने .....)
वासनानी वाटमां, विचारोना विकार छे,
वातो करीए डाही डाही, शून्य समो आचार छे... वासनानी विषयोंनी संताकूकड़ी, रमवामां मनडूं म्हाले,
स्नेह, काम, दृष्टिनी राग त्रिके जीव नाचे ताले रे वासनानी देह अने आत्मानां मिलन, माथे कर्मोंना पडल छवाया
भवों अनंता वित्यां, अविरतीना रंगे रंगाया रे .... वासनानी दस दृष्टांते दुर्लभ मानव-भवने सार्थक करीए,
पद निर्वाणने पामी, ऋण निगोद मुक्तिनुं भरीए रे ... वासनान
“अरि”
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क्यांथी आव्यो, क्यां छे जवानो, खबर नथी कई आ जीवनी ।
अय खबर नथी हूँ कोण छू ?
चिंता धरजे एक 'शिव' नी ॥ ज्ञानी कहे छे, एकलो आव्यो, एकलो तू छे जवानो, मानव जन्म छे, ममता अने, आसक्ति अरि हणवानो ।
वीतराग प्रणीत बार भावना, जीवनी संजीवनी | मंत्रे द्वेष सहु टलशे ।
'सव्वे जीवा कम्म वस्स' ना, बार भावनानां चिंतन थी, राग बधो ये गलशे ।
'श्रद्धांध' चहे अरिहंत आशीष मलजो 'अरि' थी मुक्ति |
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क्यांथी
क्यांथी ....
क्यांथी ...