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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG आलोचना करने वाला माया और मान का त्याग करके जैसा हुआ, किया वह सब गुरु के सामने कह देना चाहिए। ___ जो विधिपूर्वक आलोचना करता है वह नि:शल्य हो जाता है । (माया शल्य, नियाणा शल्य, मिथ्यात्व शल्य)
प्रशस्त क्षेत्र एवं तिथियाँ * प्रशस्त 6 क्षेत्र :
1.शेरडी का वन (गन्ने का वन), 2. डांगर का वन, 3. पद्म सरोवर, 4. खिले हुए फूलों का बगीचा, 5. गंभीर एवं आवाज करता हुआ दक्षिणावर्त पानीवाला सरोवर (तालाब), 6. जिनेश्वर देव का मंदिर । इन क्षेत्रों में आगम सूत्र का वांचन (अध्ययन) हो सकता है।
दिशा :- आगम का अध्ययन, स्वाध्याय करना हो तब पूर्व दिशा, उत्तर दिशा या जिस दिशा में प्रभु प्रतिमा हो वह दिशा एवं जिस दिशा में जिन मंदिर हो वह दिशा भी श्रेष्ठ होती है। इन दिशाओं सन्मुख बैठकर अध्ययन करना चाहिए।
वांचना देने वाले दिशा सन्मुख रहकर वांचना दे एवं वांचना लेने वाले भी गुरु सम्मुख (सामने) बैठकर वांचना लें।
जब स्वाध्याय मांडाला में बैठकर करने का हो तो स्वाध्याय कराने वाले दिशा सम्मुख रहे और सभी मंडलाकारे बैठकर स्वाध्याय करें।
काल :- दिन का और रात का पहला और अंतिम प्रहर - यानि दिन के दो और रात्रि के दो कुल 4 प्रहर में ग्रंथ कंठस्थ करने का नियम है। चूर्णिकार महर्षि द्वारा बताए गए दिशा और काल कहे गए हैं।
तिथियाँ - प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी एवं त्रयोदशी आगम की वांचना का प्रारंभ होता है।
चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी, नवमी, षष्ठी, चतुर्थी, द्वादशी इन तिथियों में वांचना नहीं दी जाती।
* अद्य का तिथि : ? किं कल्याणकादिकम् ?
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