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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG लिए नामकर्म और उस गति में ले जाने वाला आनुपूर्वि नाम कर्म उपार्जन करना पड़ता है, शेष सात कर्मों का बंध जीवात्मा निरंतर करता रहता है। क्योंकि जहां क्रिया है वहां कर्म है। ___ मन की विचार धाराओं में और मुख्य रूप से भाव मन में एक समय के लिए भी स्थिरता नहीं । कारण ? कि गत भवों में भोगे हुए पदार्थों की स्मृति एवं इस भव में पदार्थ प्राप्त करने की तत्परता इन दो कारणों से मन स्थिर नहीं रहता। द्रव्य मन को स्व-आधीन करने के लिए सालंबन ध्यान करने के उत्तम साधन स्वीकार करने के बाद भी भाव मन को स्थिर करना अत्यन्त दुर्लभ है।
जिस लेश्या को ग्रहण करके जीव मृत्यु को प्राप्त करता है उसी लेश्या का रूप लेकर वह जीव उत्पन्न होता है।
1. प्रथम, अगले भव का आयुष्य का बंध। 2. उसके बाद, गति के लिए नाम कर्म का बंध। 3. उस गति में ले जाने वाला आनुपूर्वि नामकर्म का बंध।
निह्नववाद भगवान के सिद्धांतों के विरुद्ध अपने मत का दृढ़ता के साथ प्रतिपादन करे उसे निह्नव कहते हैं।
* निह्नववाद :- अपने कदाग्रह के कारण आगम द्वारा प्रतिपादित तत्वों का परंपरा के विरुद्ध अर्थ करे वह निह्नव कहलाता है। जैन दृष्टि से यह मिथ्यात्व का प्रकार है। सूत्रार्थ का विवाद किया जाता है, किन्तु जो अपना कदाग्रह रखता है तब वह निह्नव में परिणीत हो जाता है।
8 प्रकार के निह्नव मत :
1. जमाली :- उसने अपने मन के विचारों का प्ररूपण किया, प्रभु महावीर का जमाई था एवं शिष्य भी था । महावीर भगवान का कहा सूत्र ‘क्रियामाण कृत' - अर्थात् जो करने वाला कार्य उसे किया गया कहते हैं, जमाली ने उसके विरुद्ध अपना मत स्थापित किया । व्यवहार भाषा का भगवान महावीर का वाक्य 'कडेमाणे कडे कराता हो तो वह कार्य किया 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe 379 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO