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पूज्य पिताजी ! आपने पितृ वात्सल्य दिया, आपने धर्मभाव से पालन किया आपने नर से नारायण बनने की प्रेरणा दी,
आपके चरणों में इस ग्रंथ को अर्पण कर धन्य बनता हूँ।
पूज्य मातुश्री ! जननी जैसा कोई दूजा नहीं मिले । कारण, आपने संस्कारों का सिंचन किया इस उपकार के कारण
यह ग्रंथ ज्ञानपिपासुओं को
आपके नाम से
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अर्पण
करते कृतघ्नता अनुभव करता हूँ।
- विजय
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