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कर्म में तीन शक्तियाँ : आवारक (आवारण) विकारक (मोहनीय) प्रतिरोधक (अंतराय)। कर्म के प्रभाव के कारण व्यक्तियों में अंतर दिखाई देता है।
कर्मवाद का नियम है कि कर्म के प्रति अपनी यदि जागृत अवस्था हो जाए तो कर्म के फल को बदलने का अधिकार अपने को मिल सकता है।
द्रव्य को बदलने से कर्म फल बदल जाते हैं।
क्षेत्र को बदलने से कर्म फल बदल सकते हैं (जैसे भरतजी का अरीषा (कांच) महल) काल को बदलने से कर्म फल बदल सकते हैं । (ध्यान के लिए रात्रि 2 से 4 का समय श्रेष्ठ)
स्वाध्याय - प्रथम प्रहर में प्रात: 6 से 9 श्रेष्ठ ध्यान - दूसरे प्रहरी में 9 से 12, श्रेष्ठ।
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