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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG * आत्मा ही आत्मा को, आत्मा में, आत्मा द्वारा जानती है, यही आध्यात्म है । यही सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र है । इस विश्व में कर्ता, हर्ता, भोक्ता सभी कुछ आत्मा है। आत्मा के चमत्कार देखने के लिए भी दृष्टि चाहिए। * तुम्हारी चेतना, चेतन स्वरुप में आत्मा में आत्मा द्वारा आत्मा के लिए आत्मा को देखती है, जानती है, अनुभव करती है - इसी का नाम आध्यात्म है। * In essence अपनी चेतना में कर्तव्य जो बाहर पुद्गल में, जड़ में है, उसे अंदर आत्मा में ले जाना वह आध्यात्म । * भाव मन यह द्रव्यमन द्वारा आत्मा में उत्पन्न होने वाले भाव हैं । असंज्ञी को भी सूक्ष्मातिसूक्ष्म द्रव्यमन होता है । सिर्फ 14वें गुणस्थान में द्रव्यमन नहीं होता । द्रव्यमन सभी योनि में होता है। अन्यथा आत्मा उपयोग का प्रवर्तन नहीं कर सकती। भावमन से कर्मबंध होते हैं । कर्मबंध 4 प्रकार के होते हैं :- 1. स्पृष्ट, 2. बद्ध स्पृष्ट, 3. निधत्त, 4. निकाचित। ___ राग, द्वेष, मोह, मान, माया, असूया, आसक्तियों की परिणतियाँ भाव मन में ही रहते हैं। ऐसे असंख्य भावों के कारण आत्मा पर निरन्तर कर्म आते ही रहते हैं। सभी जीवों को भाव मन होता है। कर्म बंध भाव मन से ही होता है। भाव मन अंदर में रहे हुए आत्मा के भाव हैं । द्रव्यमन, अणु-परमाणु की संरचना है। भावमन निरंतर सक्रिय है । इसीलिए आत्मा एक क्षण भी मनोभावों से दूर नहीं रहती । चींटी जैसा छोटे जीव को भी हर क्षण भाव होता ही रहता है। मनोभाव से शून्य कोई भी आत्मा इस जगत में नहीं । प्रतिक्षण उत्पन्न होने वाले मनोभाव को उपयोग मन कहते हैं। भाव मन के दो भेद हैं :- 1. उपयोग मन (Conscious Mind), लब्धि मन (Unconscious Mind or Subconscious mind.) मन की चंचलता और तरलता (विविध विषयों में दौड़ जाना) उपयोग मन के आभारी हैं। ७०७७०७0000000000017650090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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