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________________ ग्रन्थकर्तृणां परिचयः । Ne:मूलसंघ अर्थात् दिगम्बरसम्प्रदायकी चार शाखायें हैं-नन्दि, सिंह, सेन और देव । इन शाखाओंकी भी प्रतिशाखायें हैं, जो गणगच्छादि नामोंसे प्रसिद्ध हैं । नन्दिसंघमें जो कई गणगच्छादि हैं उनमेंसे एक देशीय गा भी है। त्रिलोकसारके कर्ता महामना नेमिचन्द्र इसी देशीय गणमें हुए हैं। यह गण कर्नाटकमें बहुत ही प्रसिद्ध हुआ है और इसमें बहुत बड़े बड़े विद्वान हुए हैं । इस गणके बीसों विद्वान् ‘सिद्धान्तचक्रवर्ती ' की पदवीसे विभूषित हुए हैं । आचार्य नेमिचन्द्रको भी यह महती पदवी प्राप्त थी। इनकी गुरुपरम्पराका पता आचार्य गुणनन्दिसे लगता है । गुणनन्दिके शिष्य विबुधगुणनन्दि, विबुधगुणनन्दिके अभयनन्दि और उनके वीरनन्दि । यथाःबभूव भव्याम्बुजपद्मबन्धुः पतिर्मुनीनां गणभृत्समानः । सदग्रणीर्देशिगणाग्रगण्यो गुणाकरः श्रीगुणनन्दिनामा ॥ गुणग्रामाम्भोधेः सुकृतवसतेर्मित्रमहसा.. मसाध्यं यस्यासीन किमपि महीशासितुरिव । स तच्छिष्यो ज्येष्ठः शिशिरकरसौम्यः समभवत् प्रविख्यातो नाम्ना विबुधगुणनन्दीति भुवने ॥२॥ मुनिजननुतपादः प्रास्तमिथ्याप्रवादः, सकलगुणसमृद्धस्तस्य शिष्यः प्रसिद्धः। अभवदभयनन्दी जैनधर्माभिनन्दी . ... स्वमहिमजितसिन्धुर्भव्यलोकैकबन्धुः ॥३॥ भव्याम्भोजविबोधनोद्यतमतेर्भास्वत्समानत्विषः शिष्यस्तस्य गुणाकरस्य सुधियः श्रीवीरनन्दीत्यभूत् । स्वाधीनाखिलवाड्ययस्य भुवनप्रख्यातकीर्तेः सतां संसत्सु व्यजयन्त यस्य जयिनो वाचः कुतर्काडशाः॥ -चन्द्रप्रभचरित ।
SR No.007269
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherManikyachandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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