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:: प्राबा-खास::
परवार, पुरवार और पौरवाड़ तीनों शब्दों में वर्षों की पूर्ण समता है और मात्राओं में भी अधिकतम समता ही है । इन तीनों में सबातीयतत्त्व हो अथवा नहीं हो, फिर भी कई एक साधारण जन इन तीनों ज्ञातियों को एक ही होना मानते-से सुने जाते हैं । इस दृष्टि से परवार, पुरखारबाति के विद्वानों से और अनुभकशील व्यक्तियों से भी पत्र-व्यवहार किया गया । जिसका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है । ___ निम्न ११ प्रश्न सर्वश्री नाथूरामजी 'प्रेमी'-बम्बई, कामताप्रसादजी जैन–अलीगंज; श्री अजितकुमारजी शास्त्री-दिल्ली, नन्नूमलजी जैन-दिल्ली और श्री भा० दिगम्बर जैन संघ-चौरासी मथुरा को भेजे गये । १-पुरवार, परवार, पौरवाड़ क्या एक शब्द है ? २-श्रापकी ज्ञाति की उत्पत्ति कब, कहां और किन आचार्य के प्रतिबोध पर हुई है? ३-अथवा आपकी ज्ञाति का वर्तमान रूप अनादि है ? ४-आपकी झाति में प्राचीन गोत्र कितने हैं, कौन हैं, आज कितने विद्यमान हैं ? ५-वे कौन प्राचीन एवं प्रामाणिक ऐतिहासिक पुस्तकें हैं जिनमें आपकी ज्ञाति की ऐतिहासिक साधन-सामग्री
प्राप्य है। ६-आपके कुलगुरु कौन और कहाँ २ के हैं ? ७-भारतभर में आपकी ज्ञाति के कितने घर हैं ?
-आपकी ज्ञाति में कौन २ ऐतिहासिक व्यक्ति हो गये हैं ? ह-राजनीतिक दृष्टि से आपकी ज्ञाति का स्थान अन्य ज्ञातियों में क्या महत्व रखता है ? ... १०-आपकी ज्ञाति संयुक्तप्रान्त-आगरा में ही अधिकतर क्यों वसी है ? ११-आपकी नाति स्वतंत्र ज्ञाति है अथवा किसी ज्ञाति की शाखा ? . दिगम्बर जैन संघ, मथुरा का उत्तर मिला:-'आपके लिये उत्तर देने लायक कोई सामग्री हमारे यहां नहीं है। .. श्री कामताप्रसादजी के उत्तर का संक्षिप्त सारः१-हां, ये तीनों शब्द एक ही अर्थ को बताते हैं । बोलचाल के भेद से अन्तर है। २-१२वीं शती के लेखों में भी हमें यदुवंशी लिखा है । अतः हम लोग जन्मतः जैन हैं । ३-गोत्रों में काश्यपगोत्र प्राचीन है। '४-हम ज्ञातियों को अनादि नहीं मानते । मनुष्यजाति अनादि है। '५-हमारे यहां की गुरुपरम्परा नष्ट हो गई। .: श्री नाथूरामजी प्रेमी का उत्तर वस्तुतः सहानुभूति और सहयोग की भावनाओं से अधिकतम सजित प्राप्त हुया । उन्होंने बितने इस विषय पर लेख लिखे, उनकी क्रमवार सूची उतार कर भेज दी और लिखा कि मेरे सारे लेख श्री अगरचन्द्रजी नाहटा, बीकानेर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं । आप उनका उपयोग कर सकते हैं।