________________
खण्ड ] : विभिन्न प्रान्तों में प्राज्ञा सद्गृहस्थों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें-गूर्जर-काठियावाड़ और सौराष्ट्र-अहमदाबाद ::[५०
प्र० वि० संवत् प्र० प्रतिमा प्र० श्राचार्य प्रा. ज्ञा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठ सं० १५३७ वै० वासुपूज्य- द्विवंदनीकगच्छीय-प्रा० ज्ञा० श्रे० रत्ना ने भा० रामति, पुत्र अदा भार्या
शु०१० सोम० पंचतीर्थी सिद्धसरि कर्पूरी पुत्र कुरा के सहित. सं० १५४४ फा० विमलनाथ आगमगच्छीय- पेथड़संतानीय प्रा० ज्ञा० श्रे० गणीा के पुत्र भूपति ने शु० २ शुक्र०
विवेकरत्नसरि स्वभा० साधूदेवी, पुत्र सचवीर, दृढादि के सहित स्वश्रेयोर्थ. सं० १५८० वै० सुमतिनाथ आगमगच्छीय- प्रा. ज्ञा० श्रे० अर्जुन ने स्वभा० आलूणदेवी, पुत्र देवशु०१२ शुक्र
शिवकुमारसरि राज स्त्री लक्ष्मीदेवी पुत्र लडुआ भा० वीरा के सहित
स्वश्रेयोर्थ.
श्री महावीर-जिनालय में सं० १४८७ मार्ग• शांतिनाथ तपा० सोमसुन्दर- प्रा. ज्ञा० श्रे० देवड़ भा० देल्हणदेवी के पुत्र हीराचन्द्र ने शु०५
सरि भा० पूरीदेवी, पुत्र राजा, वजादि के सहित. सं० १५०० माघ शीतलनाथ तपा० रत्नशेखर• प्रा० ज्ञा० श्रे० आका भा० धरणीदेवी पुत्र नृसिंह भा० शु० ५ सोम०
सरि माकूदेवी के पुत्र पासा ने स्वभा० चंपादेवी, प्रा. सचादि
के सहित स्वश्रेयोर्थ. सं० १५१० चै० सुमतिनाथ उके० सिद्धाचार्य- प्रा० ज्ञा० श्रे० सारंग ने स्वभा० सांरुदेवी, पुत्र जाला, कृ. १० शनि०
संतानीय कक्कसरि तलकादि के सहित स्वश्रेयोर्थ. सं० १५२३ वै० विमलनाथ- तपा० लक्ष्मी- प्रा. ज्ञा० श्रे० लाखा भा० वयज़ के पुत्र देवराज ने शु० ३ सोम० पंचतीर्थी सागरपरि स्वभा० वानूदेवी के सहित स्वश्रेयोर्थ.
श्री चतुर्मुखा-शांतिनाथ-जिनालय में पंचतीर्थी सं० १५१२ माघ सुविधिनाथ श्रीसूरि प्रा०ज्ञा० श्रे० महिपाक ने स्वस्त्री महूदेवी, पुत्र पद्मा, वाल्हा, कु. ५
रत्ना, हाला,मका,कपिनादि के सहित स्वपितृ एवं स्वश्रेयोर्थ. सं० १५५३ माघ कुन्थुनाथ तपा० हेमविमल- प्रा. ज्ञा० श्रे० सरसा की स्त्री कर्मादेवी के पुत्र श्रे. शु० ५ रवि०
सूरि धरणा ने भा० सहजलदेवी, भ्रात् कर्मसिंहादि के सहित. सं० १५५८ फा० विमलनाथ पूर्णिमापक्षीय नृसिंहपुर में प्रा० ज्ञा० को श्रे० पेथा की स्त्री वर्जू के पुत्र शु० ८ सोम०
श्रीमरि गेला भा० कीकीदेवी के पुत्र थावर, भाईश्रा, रत्ना-इनमें से
थावर ने स्वभा० जामी, पुत्र हरिराज, रामादि के सहित
स्वश्रेयोर्थ.
श्री मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान् के गर्भगृह में सं० १४४६ वै० मुनिसुव्रत श्रीसरि प्राज्ञा० श्रे० धृधा ने स्वभा० चांपलदेवी, पुत्र देदा, वेला शु० ३ शुक्र०
पिता-माता के श्रेयोर्थ. जै० धा०प्र० ले० सं० भा०१ ले०८४४,८२४,८१०,८४५,८५३,८५८,८७१,१४६,८८६, ८८,६०२।