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: प्राग्वाट-इतिहास::
[ तृतीय
प्र० वि० संवत् प्र० प्रतिमा प्र० आचार्य प्रा० ज्ञा० प्रतिमा-प्रतिष्ठापक श्रेष्ठि सं० १५५२ माघ आदिनाथ- चन्द्रगच्छीय- पत्तन में प्रा० ज्ञा० श्रे० महिराज की स्त्री अधकूदेवी के कृ० १२ बुध० पंचतीर्थी वीरदेवसूरि पुत्र श्रे० हंसराज ने स्वभा० चंगीदेवी, पुत्री रूपादेवी,
सोनादेवी, कोबादेवी,भ्रा० हलदेवादि के सहित सर्वश्रेयोर्थ. सं० १५६३ आषाढ़ पार्श्वनाथ तपा० निगमप्रादु- पत्तनवासी प्रा. ज्ञा० श्रे० नत्थमल की स्त्री वीरादेवी के शु०७ गुरु०
र्भावक इंद्रनंदिसूरि पुत्र सोनमल की स्त्री सोनादेवी के पुत्र व्य० कडूआ ने
सकुटुम्ब.
श्री आदिनाथ-गर्भगृह में सं० १४०५ वै० महावीर नाणचन्द्रसूरि प्रा० ज्ञा० ४० वीसल ने पिता जांजण माता सहवदेवी तथा शु० ३ मंगल.
ठ० वउला के श्रेयोर्थ.
माणसा के श्री बड़े जिनालय में पंचतीर्थी सं० १७८५ मार्ग० विमलनाथ अंचलगच्छीय- प्रा० ज्ञा० श्रे० वल्लभदास के पुत्र माणिक्यचन्द्र ने.
विद्यासागरसूरि
वीजापुर के श्री पार्श्वनाथ-जिनालय में सं० १४८८ ज्ये० सुपार्श्वनाथ श्रीसूरि प्रा. ज्ञा० श्रे० नोड़ा की स्त्री रूदी के पुत्र शिवराज ने कु०६
. स्वभा० तेजूदेवी, प्रा० अर्जुनादि के सहित स्वपिता-माता
के श्रेयोर्थ. १५४१ . आदिनाथ तपा० हेमविमल- प्रा० ज्ञा. श्रे. राजमल ने स्वभा० नीणदेवी, पुत्र कला
सरि भा० रक्षिमिणीदेवी पुत्र वलादि के सहित.
श्री शांतिनाथ-जिनालय में सं० १५१७ माघ पबप्रम- तपा० लक्ष्मी- प्रा. ज्ञा० ) पेथा की स्त्री शाणी के पुत्र माला के श्रेयार्थ. पंचतीर्थी सागरसरि भ्राता भीलराज ने भ्रात तेजपाल, मेलराजादि के सहित.
श्री गोड़ीपार्श्वनाथ-जिनालय में सं० १५१० मार्गः आदिनाथ- तपा० रत्नशेखर- प्रा० ज्ञा० श्रे० देवराज भा० रत्नादेवी के पुत्र हाला ने शु०१५ पंचतीर्थी सूरि स्वभा० कर्मिणि, पुत्रादि प्रमुख कुटुम्बसहित स्वमाता
के स्वश्रेयोथे. जै० घा०प्र० ले० सं० भा०१ ले०३०३,३७५,३८१,३८८, ४२४, ४२७,४३७,४४६ ।