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खस]: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रामा० सद्गृहस्थ-मं० सहसराज: [ Jok
श्रेष्ठि नक्षी वि० सं० १५५७
वड़लीनगर निवासी प्राग्वाटज्ञातीय गांधी सोमा के पुत्र सवराज के पुत्र नक्षीराज, महिमराज और अपा ने, जो पत्तन में रहने लग गये थे वि० सं० १५५७ मार्गशिर शु० १४ शुक्रवार को 'श्री शतश्लोकवृत्ति' लिखवाई ।१
श्रेष्ठि जीवराज वि० सं० १५८३
प्राग्वाटज्ञातीय परम श्रावक व्य० जीवराज की धर्मपत्नी जीवादेवी ने पुत्ररत्न छाछा सहित तपागच्छनायक श्री. भ. परमगुरु श्रीमद् हेमविमलसूरि के विजयराज्य में वि० सं० १५८३ चैत्र शु. १४ रविवार को श्री 'अनुयोगद्वारस्त्र' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की प्रति लिखवायी ।२।।
श्राविका अनाई वि० सं० १५६०
_____ विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में चंपकदुर्ग में प्राग्वाटज्ञातीय दोसी धरणा प्रसिद्ध श्रावक हो गया है । उसकी स्त्री का नाम अनाईदेवी था। श्राविका अनाईदेवी ने कुतुबपुरीयशाखीय श्रीमद् हर्षसंयमगणि के शिष्य पंडितवर राणा का उपदेश श्रवण करके वि० सं० १५६० अाशोज शु० १३ बुधवार को श्री 'सूयगडांगसूत्र' (मूल) की प्रति लिखवाई । यह प्रति खंभात के श्री शांतिनाथ-प्राचीन-ताड़पत्रीय जैन-ज्ञानभंडार में विद्यमान है । ३
मं० सहसराज वि० सं० १६१५
आगमगच्छाधिराज श्री विवेकरत्नमरि के पट्टालंकार विद्यमान भट्टारक श्रीमद् संयमरत्नसरि के सदुपदेश से श्री प्राग्वाटज्ञातीय श्रीक्षेत्रनिवासी मं० मणीराज के पुत्र मं० वेलराज की धर्मपत्नी खदकूदेवी के पुत्र मं० शिवराज की धर्मपत्नी चंपादेवी पुत्र, अनेक प्रतिष्ठा एवं यात्रा और अन्य पुण्यकर्म करने वाले सुश्रावक मं० सहसराज ने अपने भ्राता मं० सुरराज, भगिनी कीकादेवी, धर्मपत्नी नाकूदेवी, पुत्री श्री बाई, वीरादेवी, पुरादेवी पुत्र महं० मांकराज और उसकी धर्मपत्नी अहंकारदेवी, धनादेवी, पौत्र बभूराज प्रमुख कुटुम्बसहित वि० सं० १६१५ कार्तिक कृ. ११ रविवार को श्री भगवतीसूत्र' नामक ग्रन्थ की प्रति लिखवाई ।४।।
१-प्र०सं० भा०२ १०६० प्र०२३४ (शतश्लोकवृत्ति) २-प्र०सं० मा०२ पृ०८६.प्र.३१६ (अनुयोगदारसूत्र) ३-खं० शा० प्रा० ता० जै० ज्ञा० भ०प०४३ ४-प्र०सं०भा०२ पृ०१११ ०४१८ (भगवतीसत्र)
-सं० शा० प्रा० ० ० ० ० ०शक्षाकात ४-५०० सं० भ० २ १८:२१ ५०४२८ (भगवतशहारत)