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________________ खण्ड] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०मा० सद्गृहस्थ-० ठाकुरसिंह: [४.१ श्रेष्ठि ठाकुरसिंह वि० सं० १५४८ विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में वीरमग्राम में प्राग्वाटज्ञातीय ज्ञातिभूषण श्रेष्ठि ठाकुरसिंह हुआ है। वह अति धर्माराधक एवं दृढ़ जैनधर्मी था । उसका विवाह वानूदेवी नाम की एक परम गुणवती कन्या से हुआ था। वानूदेवी के पिता प्राग्वाटज्ञातीय पाँच थे। ये भी वीरमग्राम के ही निवासी थे । पाँचराज के पिता जसराज थे तथा माता का नाम रमाईदेवी था । पाँचराज पाँच भाई-बहिन थे। धारा, वीरा, हीरा नामक तीन छोटे भ्राता और हरदेवी नामक एक बहिन थी । पाँचराज की धर्मपत्नी का नाम बूटीदेवी था। बूटीदेवी की कुक्षि से धनराज और कान्हा नामक दो पुत्र और कीकी, ललतू , अरधू और वानूदेवी नाम की चार पुत्रियाँ उत्पन्न हुई। यह वानूदेवी श्रे० ठाकुरसिंह की पत्नी हुई। ___ श्रे० ठाकुरसिंह को अपनी पत्नी वानूदेवी से खीमराज और कतइया नामक दो संतानों की प्राप्ति हुई। खीमराज का विवाह श्वेतानूदेवी और नागलदेवी नामक दो गुणवती एवं शीलशालिनी कन्याओं से हुमा । वि० सं० १५४८ में श्रे० ठाकुरसिंह ने श्रीमद् धर्महंसमरि के सदुपदेश से श्री 'शान्तिनाथचरित्र' की प्रति लिखवा कर अपने द्रव्य का सदुपयोग किया और श्रीमद् ईन्द्रहसमरिगुरुमहाराज को वाचनार्थ अर्पित कर अपार कीर्ति प्राप्त की। वंश-वृक्ष ठाकुरसिंह [वानूदेवी] खीमा [श्वेता-देवी, नागलदेवी] कतइया धारा वीरा हीरा हरदेव पाँचराज [बूटीदेवी] । । । धना कान्हा कीकी ललतू अरधू वान्देवी प्र०सं०भा०२ पृ० ५० प्र०१६६ (शातिनाथचरित्र)
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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