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: प्राग्वाट - इतिहास :
[ तृतीय
1
। उसके एक
। वह रात्रि
उत्तम कोटि का सज्जन श्रावक था । उसकी ख्री लक्ष्मीदेवी भी वैसी ही गुणवती सदीसाध्वी स्त्री थी पुत्र उत्पन्न हुआ । उसका नाम धर्मा रक्खा गया । श्रे० धर्मा अपने माता, पिता से भी बढ़कर हुआ दिवस धर्मकृत्यों के करने में तल्लीन रहता था । वह सत्यभाषण, ब्रह्मव्रत एवं शीलत्रत के पालन के लिये दूर २ तक प्रख्यात था । उसने अनेक बिंबों की स्थापना और उद्यापनतप करवाये थे । तपागच्छनायक श्रीमद् देवसुन्दरमूरि के पट्टालंकार श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि का उपदेश श्रवण करके उसने वि० सं० १४७६ वैशाख कृ० ४ गुरुवार से वि० सं० १४८९ पर्यन्त दो लक्षग्रन्थप्रमाण श्री देवसूरिरचित 'प्राकृत- पद्मप्रभस्वामिचरित्र' की प्रति लिखवा कर पतन के ज्ञानभण्डार में अर्पित की।
प्रसिद्ध पंचम उपांग ‘श्री सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति' को जो श्रीमद् मलयगिरि ने रची थी। उसने वि० सं० १४८१ में ही ताड़पत्र पर लिखवाई । धर्म की स्त्री का नाम रतू अथवा रत्नावती था । रत्नावती पति की श्राज्ञापालिनी, गृहकर्मदक्षा एवं अति उदारहृदया स्त्रीशिरोमणि महिला थी । १
० गुणेयक और को० बाघा वि० सं० १४६०
चम्पकनेर (चांपानेर) वासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० खेता भा० लाड़ी सा० गुणेयक ने ३८ फीट लम्बा और १२|| इश्व चौड़ा एक पंचतीर्थी - भालेखपट वि० सं० १४६० का० कृ० ३ को करवाया और उसी मुहूर्त में प्राग्वाटज्ञातीय कोठारी मं० तेजमल भा० भावदेवी के पुत्र बाघमल ने भी श्री शांतिनाथप्रासाद में द्वितीय पंचतीर्थीआलेखपट करवाया |२
श्रेष्ठि मारू वि० सं० १५०४
प्राग्वाटज्ञातीय मं० मारू ने जिसकी स्त्री का नाम चमकूदेवी था, अपने पिता-माता मं० धनराज धांधलदेवी के और अपने कल्याण के लिये वि० सं० १५०४ वैशाख शु० ६ मंगलवार को श्री पार्श्वनाथचरित्र' नामक ग्रन्थ लिखवाकर श्री पूर्णिमापक्षीय श्रीमद् पासचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीमद् जयचन्द्रवरि को भेंट किया । १
श्रेष्ठ कर्मसिंह वि० सं० १५११
मालवदेशान्तर्गत खरसउदनगरवासी प्राग्वाटज्ञातीय तपापक्षीय शा० कर्मसिंह ने श्रहिल्लनगर में तपागच्छीय श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के शिष्य पं० रत्नहंसगणि के वाचन के लिये उदीचज्ञातीय लेखक म० धरणीधरण
१-प्र० सं ० भा० १ पृ० ६६-६७ ता० प्र० १०४ (पद्मप्रभुचरित्र) जै० पु० प्र० सं० पृ० ४८ प्र० ४८ (लक्षद्वयप्रथमान)
प्र० सं० भा० १ ० ६ ता० प्र० ११ ( सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति) २ - D. C.M. P. (G. O. S. Vo. LXXVI.) P. 154 (240) ३ - प्र० सं० भा० २ पृ० १० प्र० ३७ (श्री पार्श्वनाथचरित्र )