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________________ ३८० :: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जैसे वे उद्भट कवि और साहित्यकार थे, वैसे ही उराम श्रेणि के क्रियाशील अर्हद्भक्त श्रावक थे । शत्रुजय, गिरनार, शंखेश्वरतीर्थों की उन्होंने यात्रायें की थीं। अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाया था। संक्षेप में वे बहुश्रुत, शास्त्राभ्यासी और उत्तम संस्कारी कवि, पुरुष एवं श्रावक थे और उनका कुटुम्ब भी उत्तम संस्कारी एवं सुसंस्कृत था, तभी वे इतने ऊंचे साहित्यकार भी बन सके । महाकवि की कृतियों के रचना-संवत् से ज्ञात होता है कि संवत् १६६६ से सं० १६८८ उनका रचनाकाल रहा । इस रचना-काल से यह माना जाता है कि कवि का जन्म सं० १६४०, ४१ के लगभग हुआ होगा और निधन १६६० के लगभग या इसके पश्चात् । कवि आध्यात्मिक पुरुष थे। इस पर यह भी अनुमान लग सकता है कि वृद्धावस्था में उन्होंने लिखना बंद कर दिया हो और अहद्भक्ति में ही जीवन बिताने लगे हों ।* जैन साहित्य में गूर्जरभाषा के महाकवि ऋषभदास ही प्रथम श्रावक कवि हैं, जो सत्रहवीं शताब्दी में साहित्य-क्षेत्र में इतने ऊँचे उठे और उस समय के अग्रगण्य साहित्यसेवियों में गिने गये ।* न्यायोपार्जित द्रव्य का सव्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ श्रेष्ठि धीणा (धीणाक) वि० सं० १३०१ वि० सं० १३०१ आषाढ़ शु० १२ (१५), १५ (१२) शुक्रवार को धवलक्कपुरवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य० पासदेव के पुत्र गांधिक श्रे० धीणा ने अपने ज्येष्ठ भ्राता सिद्धराज के श्रेयार्थ मलधारी श्री हेमचन्द्रसूरिविरचित श्री 'अनुयोगद्वारवृत्ति' और 'श्री सवृत्तिक अनुयोगद्वारसूत्र' की एक एक प्रति ताड़पत्र पर लिखवायी। यह प्रति खंभात के श्री शांतिनाथ-प्राचीन-ताड़पत्रीय जैन-भण्डार में विद्यमान है ।। *नित्य नामु' हूँ साधनि सासो, थानिक आराध्या जे वली वासो। दोय आलोयण। गुरु कन्हइ लीधी, आठिम छठि सुधि श्रातमि कीधी ।। शत्रजय गिरिनारि संषेसर यात्रो, सलशाखा (ख शाता) भणाव्या बहु छात्रो । सुख शाता मनील गणु दोय, एक पगिं जिन भागलि सोय ॥ नित्यं गणु वीस नोकरवालि, उभा रही अरिहंत निहाली'। +प्र०सं०प्र० भा० पृ०२५ (ताड़पत्र) प्र० ३१ (अनुयोगद्वारवृति) ४८ , प्र०५८( सूत्र) जै० पु०प्र०सं० पृ०१२४ प्र०१७ ( , )
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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