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प्राग्वाट-इतिहास:
[तृतीय
१६-जिनप्रतिमा स्थापनाविज्ञप्ति १७-अमर-द्वासप्तिका १८-नियतानियत-प्रश्नोत्तर-प्रदीपिका १९-ब्रह्मचर्य-दश समाधिस्थान कुल २०-चित्रकूटचैत्यपरिपाटी-स्तवन् २१-सचरभेदी पूजा (विधिगर्भित) २२-११ बोल-सजाय
२३-कायोत्सर्ग के १६ दोष. २४-वंदन-दोष २५-उपदेश-रहस्य गीत २६-२४ दंडकगर्मित पार्श्वनाथ-स्तवन. २७-आराधना मोटी २८-आराधना नानी
२६-खंधक चरित्र-सज्झाय* ३०-विधि-शतक ३१-आदीश्वर-स्तवन-विज्ञप्तिका ३२-विधि-विचार
३३-निश्चय-व्यवहार ३४-वीतरागस्तवन (दाल) ३५-गीतार्थ-पदावबोध कुल ३६-रास-श्रुतका पक्ष ३७-३४ अतिशय स्त. ३८-वीश विहरमान जिन-स्तुति ३६-शांतिजिन-स्त० ४०--सज्झाय
४१-रूपकमाला सं० १५८६ (राणकपुरतीर्थ में रची) ४२-एकादशवचन द्वात्रिंशिका ४३-दशवैकालिक सूत्र-बाला० पत्र ३३ (जैसलमेर के भंडार में) ४४-आचारांग-बालावबोध ४५-औपपातिक सूत्र-बाला. पत्र १२५ (कच्छी द० ओ० भ० मुंबई) ४६-साधु-प्रतिक्रमणसूत्र-बाला० ४७-सूत्रकृतांग सूत्र-बाला० पत्र ८७ (खंभात) ४८-रायपसेणीसूत्र-बाला० ४६-नवतत्त्व-बाला.
५०-प्रश्नव्याकरण सूत्र-बाला० ५१-भाषा के ४२ भेदों का बाला० ५२-तंदुल वेयालीय पयन्ना-बाला०५३-जंबूचरित्र-बाला० ५४-लोंकासाथे १२२ बोल नी चर्चा ५५-चउसरण-प्रकीर्णक-बाला० सं १५६७ फा० शु० १३ रवि० ५६-जिनप्रतिमा अधिकार (गद्य) ५७-चर्चाओ (प्रतिमा, सामाचारी, पारवी के ऊपर) ५८-देवसी-प्रतिक्रमणविधि-सज्झाय.
श्रीपार्श्वचन्द्र ने इस प्रकार धर्म और साहित्य की अतिशय सेवा की । फलस्वरूप वि० सं० १५६६ वैशाख शु० ३ को श्रीमद् साधुरत्नसरि की अध्यक्षता में सलखणपुर में मोदज्ञातीय मंत्री विक्रम और सघर तथा श्रीमालीयुगप्रधानपद की प्राप्ति और ज्ञातीय दोसीगोत्रीय हेमा के पुत्र डबा, वोधा और पासराज ने महोत्सव करके देहत्याग
आपको युगप्रधानपद से और उसी अवसर पर आपके प्रमुख शिष्य महाविद्वान् समरचन्द्र को उपाध्यायपद से सुशोभित किया । वि० सं० १६०० वैशाख शु०८ शुक्र० को श्रीमद् साधुरत्नसूरि का स्वर्गवास हुआ । तदनन्तर वि० सं० १६०४ में मालवान्तर्गत खाचरोद नगर में उपाध्याय समरचन्द्र को आपने प्राचार्य-पदवी प्रदान की। श्रेष्ठि भीलग और वत्सराज ने बहु द्रव्य व्यय करके सूरिपदोत्सव किया। वि० सं० १६१२ मार्ग शु० ३ को जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ और श्रीमद् समरचन्द्रसूरि आपके पाट पर विराजे ।
*वड़तपगच्छि गुणरयणनिधान, 'साहुरयण' पण्डित सुप्रधान पार्श्वचन्द्र' नामे तस् सीस, तिणि कीघो मनि आणी जगीश-१०० सूत्र थकी कोई अधिको उण, तेय खमो जिनवाणी नृण । खखाम (१६००) चंद वरसे उजली, वइसाखी पाठमि मनरली१०१ शुक्रवार ए पुरो कयों, महा ऋषीवर भवजल तर्यो ।
खंदकचरित्र-सज्झाय ऐ०रा० से0 भा०१ पृ०१४-१५ । जै० गु० क० भा०१ पृ० १०७ (१६२) पृ०१३६.१४८
जै० गु० क० भा० ३ पृ०२४ (४५)पृ०१५८७-८६ ...... जै० सा० सं०३०३२६ । टि०३७४, ४७५७६५, ७७६, ७८३, ७८५,१०५२ ।