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________________ खण्ड ] :: श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक श्राचार्य और साधु-श्री पार्श्वचन्द्रगच्छ-संस्थापक श्री पार्श्वचन्द्रसूरि :: [ ३६५ आपके मत की शुद्धता और महत्ता देखकर अनेक जैनेतर कुल भी जैन बनने लगे। जोधपुराधीश राव गंगजी (वि० सं० १५७२-१५८८) और उनके पुत्र युवराज मालदेव को आपने प्रतिबोध दिया और लगभग अनेक कुलों को जैन बनाना । - २२०० बावीससौ क्षत्रियवंशीय मुहणोत गोत्रीयकुलों को जैन बनाकर उन्हें ओसवाल " ज्ञाति में परिगणित किया । इसी प्रकार आपने गूर्जर-प्रदेश में उनावाग्राम में वैष्णवमतानुयायी सोनीवणिकों को तथा अन्य अनेक पुर एवं ग्रामों में ऐसे गृहस्थों को जो महेश्वरी बन चुके थे प्रतिबोध देकर पुनः जैन श्रावक बनाये। आपके समय में समस्त उत्तर भारत में यवनों का जोर था। यवन मन्दिर तोड़ते थे और उनके स्थान पर मस्जिद और मकबरे बनाते थे। वि० सं० १५३० में श्रीमान् लोकाशाह ने शिथिलाचारविरोधी आन्दोलन को जन्म दिया 2 और दयासिद्धान्त का घोर प्रचार करना प्रारम्भ किया। तीर्थयात्रा, प्रतिमापूजा आदि लोकामत और पार्श्वचन्द्रसूरि । की क्रियाओं का भी लोंकाशाह ने दयादृष्टि से खण्डन करना प्रारम्भ किया । इस कार्य में लखमसिंह नामक उनके शिष्य ने उनको पूरी २ सहायता दी थी । तुरन्त ही लोकाशाह के अनेक अनुयायी हो गये; क्योंकि चैत्यवासीयतित्रों के शिथिलाचार से उनको घृणा हो उठी थी और उधर मन्दिरों के प्रति उदासीनता बढ़ चली थी। जैनसमाज में मूर्तिपूजा के खण्डन से भारी हलचल मच गई । फलस्वरूप जाग्रति उत्पन्न हुई और अनेक जैनाचार्यों ने क्रियोद्धार करके मन्दिरों और साधुओं में फैले हुये आडम्बर एवं शिथिलाचार को नष्ट करने का प्रयत्न किया । ऐसे क्रियोद्धारक साधुओं में श्री पार्श्वचन्द्रसूरि भी थे। आपने लोंकाशाह के मत के साधुओं के साथ में प्रतिमासामाचारी आदि विषयों पर तथा एक सौ बावीस बोलों पर चर्चा की थी। __ आप जैसे महान् तपस्वी एवं क्रियोद्धारक थे, वैसे ही महान् साहित्यसेवी विद्वान् भी थे। आपने धार्मिक, सामाजिक एवं नीति सम्बन्धी विषयों पर अनेक छोटे-बड़े ग्रंथ, गीत, रास आदि की रचनायें की हैं। आप संस्कृत, पार्श्वचन्द्रसूरि और उनका प्राकृत के अच्छे विद्वान थे। गुजराती-भाषा पर आपका अच्छा अधिकार था । आपश्री साहित्य ____ द्वारा लिखित जितना साहित्य प्राप्त हुआ है, वह आपके युग के साहित्यसेवियों में आपकी रही हुई प्रमुखता को सिद्ध करता है, जैसा पाठकगण आप द्वारा रचित पुस्तकों की नीचे दी गई सूची से अनुमान कर सकेंगे। आपके रचना-साहित्य की सूची निम्न प्रकार है:१-साधु-वन्दना २-अतिचार-चौपाई गा० १५६ ३-पाक्षिक-छत्रीशी. पृ० ५ गा० ३६ . ४-चारित्र-मनोरथमाला ५-श्रावक-मनोरथमाला ६-वस्तुपाल-तेजपाल रास सं० १५६७ ७-आत्म-शिक्षा ८-आगम-छत्रीशी 8-उत्तराध्ययन-छत्रीशी. (दाल) - १०-गुरु-छत्रीशी. ११-मुहपति-छत्रीशी १२-विवेक-शतक १३-दूहा-शतक १४-ऐषणा-शतक १५-संघरंग-प्रबन्ध जे० गु० क० भा०१ पृ० १३६ ग० प्र० (जैन गीता) पृ०६५ मा०रा०३०प्र०भा० भा० शो० च० (भाराम शोभा चरित्र) प्रस्तावना पृ०६ जै० सा०सं०३० पृ०५०६-७३६, ५२२-७६५, लोका साथे १२२ बोलनीपर्चा
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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