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प्राग्वाट-इतिहास:
[तृतीय
१८-इंदणमुनिनी सज्झाय सं० १७७२ मा० शु० १३ बुध० अहमदाबाद में । १६-चौवीशी सं० १७७२ भा० शु० १३ बुध० अहमदाबाद में । २०-सूर्ययशा (भरतपुत्र) नो रास सं० १७८२ २१-दामनकरास सं० १७८२ आसो० ० ११ बुध. अहमदाबाद में २२-वरदत्तगुणमंजरी सं० १७८२ मार्ग० शु० १५ बुध० अहमदाबाद में । २३-सुदर्शनश्रेष्ठिरास सं० १७८५ भा० कृ. ५ गुरु० भाजल में । २४-श्री विमलमेतानो शलोको सं० १७९५ ज्ये. शु० ८ खेड़ा हरियालाग्राम में । २५-नेमिनाथ-राजिमती-बारहमास सं० १७६५ श्रा० शु० १५ सोम० उनाउआ में । २६-हरिवंशरास सं० १७६४ चै० शु० ६ गुरु० उमरेठग्राम में । २७-महिपति राजा और मतिसागरप्रधानरास (पूना से प्रकाशित) - उपरोक्त कृतियों के अतिरिक्त सम्भव है आपकी कुछ और कृतियाँ, जब जैन-भंडारों का उद्धार होगा निकल भावेंगी। आप जैसे कवि और विद्वान् थे, वैसे ही महातपस्वी भी थे। आप खेड़ा के गृहस्थ थे। खेड़ा के प्रति आपका मातृ-भूभिराग भी था। वैसे खेडा सुन्दर ग्राम भी है। खेडा के पास में तीन नदियों का संगम होता है। आपने एक बार त्रिवेणी-संगम पर चार माह तक नित्य नियम से कायोत्सर्गतप किया था। इस प्रखर तपस्या के प्रभाव से मुग्ध हो कर पाँच सौ भावसार वैष्णवमतानुयायी जैन बन गये। सोजींचा ग्राम के पटेलों को आपने
जैन बनाये । खेड़ा का रहने वाला रत्न नामक भावसार कवि आपके संग में रह कर ही प्रसिद्ध कवि बना था। वि० सं० १७८६ चैत्र शु० १२ को आपने शजयतीर्थ की यात्रा की। आपका स्वर्गवास भी मियाग्राम में ही हुआ । आपकी कृतियों से ज्ञात होता है कि आपका अधिक जीवन पाटण, अहमदाबाद और खेड़ाग्राम में रहते हुये साहित्य की सेवा करते हुये व्यतीत हुआ। वि० सं० १७४६ से वि० सं० १७६६ तक आपका साहित्यकाल रहा । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि श्रापका स्वर्गवास उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ हो ।*
तपागच्छीय श्रीमद् विजयलक्ष्मीसूरि दीक्षा वि० सं० १८१४. स्वर्गवास वि० सं० १८६६.
मरुधरप्रान्त में अर्बुदाचल के सामीप्य में बसे हुये पालड़ी नामक ग्राम में रहने वाले प्राग्वाटज्ञातीय श्रे. हेमराज की स्त्री श्रीमती आणंदादेवी की कुक्षि से वि० सं० १७६७ चैत्र शु. ५ को आप का जन्म हुआ और घरचन्द्र आपका नाम रक्खा गया। श्रीमद् विजयसौभाग्यसूरि के कर कमलों से वि० सं० १८१४ माघ शु. ५
*जै० गु० क०मा०२ पृ०३८६-४१५ (४०४) जै० गु० क. भा०३ खं० २०१३४६-१३६५ (४०४) जे० सा० सं० इतिहास में मुनि उदयरलकृत ग्रंथों में से कई एक का रचना-संवत् उक्त संवतों से नहीं मिलता है।