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बरड] :: श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक प्राचार्य और साधु-तपागच्छीय पं० हंसरत्न और उदयरत्न ::
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इनका गृहस्थ नाम हेमराज था । पं० उदयरत्न के ये ज्येष्ठ भ्राता तो थे ही, साथ में काका-गुरु-भाई भी के क्यों कि पं० शिवरत्न और पं० ज्ञानरत्न दोनों उपा० सिद्धरत्न के प्रशिष्य-शिष्य होने से गुरु भाई थे। पं० शिवरल
के शिष्य उपा० उदयरत्न थे और आप पं० ज्ञानरत्न के शिष्य थे। वि० सं० १७६८ इंसाल
चैत्र शु० शुक्रवार को मुनि हंसरत्न का मियाग्राम में स्वर्गवास हो गया। मियाग्राम में आपका एक स्तूप है जो अभी भी विद्यमान है। वि० सं० १७८१ में आपने धनेश्वरकृत 'शत्रुजय माहात्म्य को पन्द्रह सर्गों में सरल संस्कृत गद्य में लिखा और वि० सं० १७६८ के पहिले 'अध्यात्मकल्पद्रुम' पर प्रह प्रकरण रत्नाकर मा० ३ लिखे । ।
ये गूर्जर-भाषा के प्रसिद्ध कवि एवं अनुभवशील विद्वान् थे । इनकी छोटी-बड़ी लगभग २७ सचाईस कृतियाँ उपलब्ध हैं । गूर्जर-भाषा पर आपका अच्छा अधिकार था। आपकी कविता सरल और सुबोध एवं मनोहर शब्दों
में होती थी। सहस्रों स्त्री, पुरुष आपकी कविता को कंठस्थ करने में रुचि प्रकट उपाध्याय उदयरत्न
करते थे। आपके समय में आपकी कविताओं का अच्छा प्रचार बढ़ा। आपने प्रसिद्ध आचार्य स्थूलभद्र का वर्णन नवरस में लिखा । आपने समय २ पर जो कृत्तियाँ लिखीं, उनके नाम इस प्रकार है१-जंबूस्वामीरास वि० सं० १७४६ द्वि० भा० शु० १३ खेड़ा हरियालाग्राम में। . २-अष्टीप्रकारी पूजा सं० १७५५ पौ० शु० १० पाटण में । ३-स्थूलभद्ररास-नवरस सं० १७५६ मार्ग शु० ११ उनाग्राम में । ४-श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ नो शलोको सं० १७५६ वै० कृ. ६। ५-मुनिपतिरास सं० १७६१ फा० कृ० ११ शुक्र० पाटण में । ६-राजसिंह (नवकार) रास सं० १७६२ मार्ग शु० ७ सोमवार अहमदाबाद में । ७-बारहव्रतरास सं० १७६५ फा० शु० ७ रवि० अहमदाबाद में । ८-मलयसुन्दरीमहाबल (विनोद-विलास) रास सं० १७६६ मार्ग कृ० ८ खेड़ा हरियालाग्राम में । 8-यशोधररास सं० १७६७ पौ० शु० ५ गुरुवार पाटण के उर्णाकपुरा में (उनाउ)। १०-लीलावती-सुमतिविलासरास सं० १७६७ आश्विन० ० ६ सोम० पाटण के उनाउ में । ११-धर्मबुद्धि अने पापबुद्धिनो रास सं० १७६८ मार्ग शु० १० रवि. पाटण में । १२-शजयतीर्थमाला-उद्धाररास सं० १७६६ १३-भुवनभानु-केवली-रास (रसलहरी-रास) सं० १७६६ पौ० शु० १३ मंगलवार पाटण के उनाउ में । १४-नेमिनाथ शलोको। १५-श्रीशालिभद्रनो शलोको। . १६-भरत-बाहुबलि शलोको सं० १७७० मार्ग शु० १३ आद्रज में । १७-भावरत्नमरि-प्रमुखपांचपाट-वर्णनगच्छ-परम्परारास सं० १७७० खेड़ा में।
तस गणधर वंदु गुणवंता, श्री मेघरत्न मुणिरायाजी. तास शिष्य शिरोमणि सुन्दर, श्री अमररल सुपसाईजी।
गणि शिवरल तसु शिष्य प्रसीधा, पंडित जेणे हरायारे, ते मई गुरु तिणे सुपसाई, कथा कही थई रागीजी। उदरलकृत 'जंबूस्वामीरास' की ढाल ६६, उदयरल कृत 'अष्टप्रकारीपूजा' पृ०७५, उदयरलकृत 'हरिवंशरास' का अन्तिममाग।