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खरड ] : श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक प्राचार्य और साधु-तपागच्छीय श्रीमद् कल्याणविजयगणि:: [३४१
जगद्गुरु हीरविजयसरि लालपुर से विहार कर अन्यत्र पधारे । मुनि कल्याणविजय भी उनके साथ में विहार करने लगे। वि० सं० १६२४ तक आपने वेद, पुराण, तर्कशास्त्र, छंदग्रंथ और चिंतामणि जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों का स्वाध्याय और वाचकपद की अध्ययन करके अच्छी योग्यता प्राप्त करली । हीरविजयसूरि ने आपको सब प्रकार से प्राप्ति
योग्य समझ कर वि० सं० १६२४ फाल्गुण कृ. ७ को अणहिलपुरपत्तन में महामहोत्सव पूर्वक उपाध्यायपद प्रदान किया ।
उपाध्याय कल्याणविजयजी व्याख्यानकला में अति निपुण थे। इनकी सरस और सरल भाषा में कठिन से कठिन विषयों को श्रावकगण अच्छी प्रकार समझ जाते थे । सरस व्याख्यानकला के कारण उपाध्याय कल्याणअलग विहार और धर्म की विजयजी की ख्याति अत्यधिक प्रसारित होने लगी। ये भी ग्राम २ भ्रमण करके सेवा
धर्मप्रचार करने लगे । जहाँ जहाँ ये गये, वहाँ उग्रतप और बिम्ब-प्रतिष्ठायें अधिक संख्या में हुई। खंभात और अहमदाबाद में बिम्ब-प्रतिष्ठा करवा कर गुरु महाराज के आदेश से बागड़ और मालवप्रान्त में इन्होंने भ्रमण करना प्रारंभ किया । मुँडासा नामक ग्राम में इन्होंने ब्राह्मण पंडितों को वाद में परास्त किया । वहाँ से आपने बागड़देश में अंतरिक्षप्रभु की यात्रा की। कीका भट ने आपके व्याख्यान से रंजित होकर एक जिनालय बनवाया और उपाध्यायजी ने उपरोक्त मन्दिर की प्रतिष्ठा जगद्गुरु हरिविजयहरि के करकमलों से बड़ी सज-धज के साथ करवाई। वहाँ से विहार करके आप अवन्ती पधारे। वहाँ आप में और स्थानकवासी साधुओं में वाद हुआ । वाद में आपकी जय हुई और वहाँ आपने चातुर्मास किया।
___ अवंती से विहार करके आप भारी संघ से श्री मक्षीजीतीर्थ की यात्रा को पधारे । श्रे० सोनपाल ने इस संघ में भारी व्यय किया था। उसने मक्षीतीर्थ में साधर्मिकवात्सल्य किया और उपाध्यायजी की सुवर्ण से पूजा की । तत्पमतीतीर्थ की यात्रा र थात् संघ के समक्ष श्रे० सोनपाल ने अपनी अन्तिम अवस्था जानकर उपाध्यायजी सोनपाल की दीक्षा और महाराज से उसको दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की। उपाध्यायजी ने श्रे० सोनपाल उनका स्वर्गारोहण को महामहोत्सव पूर्वक दीक्षा प्रदान की और उसका मुनि सोनपाल ही नाम रक्खा। दीक्षा ग्रहण करते ही मुनि सोनपाल ने उपाध्याय महाराज साहब से अनशनव्रत ग्रहण किया। इस व्रत का महोत्सव श्रे० नाथूजी ने किया था । नव दिन अनशन करके मुनि सोनपाल स्वर्ग गये ।
___मक्षीतीर्थ से आप सारंगपुरक्षेत्र की यात्रा करते हुये मण्डपदुर्ग (मांडवगढ़) पधारे और वहाँ आपने चातुमास किया । मांडवगढ़ से चातुर्मास के पश्चात् आप अनेक श्रावक, श्राविकाओं के सहित बड़ी धूम-धाम से अन्यत्र विहार और सूरी- वडवाण पधारे। इस यात्रा का व्यय श्रे० भाईजी, सींघजी और गांधी तेजपाल श्वर का पत्र ने किया था । वड़वाण में बावनगजी जिनप्रतिमा के दर्शन करके आपने खानदेश की
ओर विहार किया और बुरहानपुर में आपने चातुर्मास किया। चातुर्मास के पश्चात् बुरहानपुर के श्रेष्ठि भानुशाह ने उपाध्यायजी महाराज की तत्त्वावधानता में अंतरिक्षतीर्थ के लिये संघयात्रा निकाली । अंतरिक्षतीर्थ की यात्रा करके आप देवगिरि पधारे और वहाँ ही आपका चातुर्मास हुआ । देवगिरि से आप प्रतिष्ठानपुर (पेठण) पधारे । यहाँ आपको जगद्गुरु हीरविजयसूरि का मरुधरप्रान्त से पत्र मिला कि तुरन्त विहार करके इधर आवे; क्योंकि उनको दिल्ली जाने के लिये सम्राट अकबर बादशाह का निमंत्रण प्राप्त हो चुका था।