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________________ ३३४] : प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय मिलते हैं, उनमें अधिकांश लेख आप श्री से ही संबंधित पाये जाते हैं । ऐसा संभवतः शायद ही कोई तीर्थ, नगर, ग्राम होगा; जहाँ प्राचीन दश-पाँच प्रतिमाओं में आप के कर-कमलों से या आप श्री के सदुपदेश से प्रतिष्ठित कोई प्रतिमा नहीं हो । आपश्री के गच्छनायकत्व से जैसी धर्मक्षेत्र में जाग्रति हुई, उसी के समकक्ष आप श्री की तत्त्वावधानता में साहित्यक उन्नति भी हुई। अनेक प्रमाण प्राप्त हैं कि आपश्री स्वयं शास्त्रों के पूर्णपंडित थे और आपश्री का शिष्य-परिवार एवं साधुमण्डल भी विद्वत्ता एवं पांडित्य में अपना अग्रगण्य स्थान रखता था । आपश्री की निश्रा में रहने वाले साधुगण शक्तिशाली लेखक, उपदेशक, वादी और ग्रंथकार थे । आपके अति तेजस्वी घरिशिष्यों में अग्रण्य (१) श्री मुनिसुन्दरसूरि, (२) 'कृष्णसरस्वती' विरुदधारक श्री जयसुन्दरसरि, (३) श्री भुवनमुन्दरसूरि, (४) श्री जिनसुन्दरसूरि थे, जिन्होंने अनेक ग्रंथ लिखे और अनेक प्राचीन ग्रंथों की टीकायें कीं। स्वयं आप श्री ने गुजराती भाषा में-(१) योगशास्त्र-बालावबोध, (२) उपदेशमाला-बालावबोध, (३) षड़ावश्यकवालावबोध, ४ नवतत्त्व-बालावबोध, ५ चैत्यवंदन, ६ भाष्यावचूरि, ७ कल्याणस्तव, ८ नेमिनाथ-नवरसफाग, आराधनापताका बालावबोध, १० षष्ठिशतक बालावबोध, नामक ग्रन्थ लिखे हैं तथा ११ चउशरणपयन्ना पर संस्कृत में अवचूरि और अन्य विविध स्तवनों की रचना की । वि० सं०१४६७ में उन्होंने अष्टादशस्तवी लिखी, जिस पर उनके शिष्य सोमदेव ने अवचूणि लिखी । १३ सप्तति पर अवचूर्णि, १४ आतुरप्रत्याख्यान पर अवचूर्णि आदि छोटे-बड़े अनेक ग्रन्थ बनाये । - आपश्री के शिष्य-प्रशिष्यों में प्रसिद्ध साहित्यसेवी सर्वश्री मुनि १ विशालराज, २ उदयनन्दी, ३ लक्ष्मीसागर, ४ शुभरत्न, ५ सोमदेव, ६ सोमजय आदि आचार्य ७ जिनमण्डन, ८ चारित्ररत्न, ह सत्यशेखर, १० हेमहंस, ११ पुण्यराज, १२ विवेकसागर, १३ राजवर्धन, १४ चरित्रराज, १५ श्रुतशेखर, १६ वीरशेखर १७ सोमशेखर, १८ ज्ञानकीर्ति, १६ शिवमूर्ति, २० हर्षमूर्ति, २१ हर्षकीर्ति, २२ हर्षभूषण, २३ हर्षवीर, २४ विजयशेखर, २५ अमरसुन्दर, २६ लक्ष्मीभद्र २७ सिंहदेव, २८ रत्नप्रभ, २६ शीलभद्र, ३० नंदिधर्म, ३१ शांतिचन्द्र, ३२ तपस्वी विनयसेन, ३३ हर्षसेन, ३४ हर्षसिंह आदि वाचक-उपाध्याय पण्डित थे। आप श्री के परिवार में १८०० साधु थे। आपश्री के युग में प्राचीन ग्रन्थों का लिखना और उनका संग्रह करना अत्यावश्यक कर्तव्य समझा जाता था। प्राचीन ग्रन्थ अधिकतर ताड़पत्र पर ही लिखे हुए होते थे। आपश्री के युग में आपश्री के शिष्य एवं साधु-मण्डल ने और अन्य गच्छाधिपति एवं उनके विद्वान् आचार्य, साधु, वाचक, पंडित शिष्यों ने कागज पर लिखने का अति ही भगीरथ एवं विशेष व्यापक प्रयास किया। राजपूताना और गुजरात के सर्व ज्ञान-भंडारों के ग्रन्थों को जो ताड़पत्र पर थे कागज पर लिख डाले गये। खंभात के प्रसिद्ध ज्ञान-भण्डार के सर्व ग्रन्थों को तपागच्छीय आचार्य देवसुन्दर और सोमसुन्दरसरि के शिष्य एवं साधु-मण्डली ने कागज पर लिखे। सं० १४७२ में खंभातवासी मोदज्ञातीय श्रे० पर्वत ने पुष्कल द्रव्य व्यय करके आपश्री के कर-कमलों से ग्यारह मुख्य अंगों को कागज पर लिखवायें। सांडेरानिवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० मंडलिक ने श्रीमद् जयानंदसूरि के सदुपदेश से अनेक पुस्तकों का लेखन कागज पर करवाया । आपश्री के सदुपदेश से ताड़-पत्र पर भी लिखे हुये कई ग्रन्थ पत्तन के भंडार में मिलते हैं।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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