________________
खण्ड ]
: श्री जैन श्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु-तपागच्छीय श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि :: [३३३
श्री विजया नामक ठक्कुर ने कपिलवाटक में जिनालय बनवाया और उसमें आपश्री के कर-कमलों द्वारा श्री शांतिनाथबिंब की शुभ मुहूर्त में प्रतिष्ठा हुई।
अहमदाबाद के बादशाह अहमदशाह का प्रीतिपात्र एवं अति प्रतिष्ठित श्रे० समरसिंह सोनी ने गच्छपति श्रीमद् सोमसुन्दरमरि के सदुपदेश से श्री शत्रुजयमहातीर्थ की यात्रा की और वहाँ से श्री गिरनारतीर्थ की यात्रा को गया और पुष्कल द्रव्य व्यय करके महामात्य वस्तुपाल के जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया । श्रे० समरसिंह और बेदरनगर के नवाब के मानीता श्रे० पूर्णचन्द्र कोठारी ने श्री गिरनारतीर्थ पर जिनालय बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा गच्छपति श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के उपदेश से जिनकीर्तिसूरि ने की।
__ गंधारवासी श्रे० लदोवा ने श्री गिरनारतीर्थ पर जिनालय बनवाया और गच्छपति श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि की आज्ञा से उसकी प्रतिष्ठा श्रीमद् सोमदेवसूरि ने की।
मूजिगपुरवासी श्रे० मूट नामक सुश्रावक ने अगणित पीतल प्रतिमा और चौवीशी बनवाई और उनकी प्रतिष्ठा स्वयं आपश्री ने अति धूम-धाम से की।
अणहिलपुरपत्तन में श्रे० श्रीनाथ अति प्रतिष्ठित एवं श्रीमंत सुश्रावक था । वह आपश्री का अनन्य भक्त था । आपश्री की अधिनायकता में उसने अपने परिवार सहित श्री शत्रुजयमहातीर्थ और गिरनारतीर्थ की स्मरणीय यात्रा की। श्रे० श्रीनाथ के सं० मण्डन, वच्छ, पर्वत, नर्बद और डूंगर पांच पुत्र थे। ये भी गुरुदेव के अनन्य भक्त थे। ये सज्जन पचन में रह कर सदा गुरु का यश बढ़ाने के लिये जैन धर्म की नित नवीन प्रभावना करते रहते थे।
आप श्री महाप्रभावक थे। आप श्री के भक्तगण भी समस्त उत्तर भारत में फैले हुये थे। कुछ एक अनन्य भक्तगणों का परिचय तो यथाप्रसंग लिखा ही जा चुका है, जैसे मं० धरणा और रत्ना, संग्राम सोनी, संघवी गुणराज भादि और कुछ प्रसिद्ध भक्तों का नामोलेख नीचे दिया जाता है।
१. अणहिलपुरपत्तन के यवन-अधिकारी का बहुमानीता श्रे० कालाक सौवर्णिक (सौनी)
२. स्तंभतीर्थवासी लखमसिंह सौवर्णिक का पुत्र यशस्वी मदन तथा उसका भ्राता वीर, जिन्होंने अनेक बार तीर्थयात्रा की, अनेक भाचार्यपदोत्सव, प्रतिष्ठा आदि करवाये ।
३. घोषानिवासी श्रे० वस्तुपति विरुपचन्द्र, जिन्होंने अनेक महोत्सव किये और तीर्थयात्रायें की।
४. पंचवारक देश के संघपति महुणसिंह, जिसने गुरुवर्य सोमसुन्दरसूरि के सदुपदेश से ऊंचा शिखरों वाला जैन प्रासाद करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीमद् शीलभद्र उपाध्याय ने की थी।
अतिरिक्त इनके भी गच्छपति श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि के अनेक अनन्य भक्त थे, जो समस्त भारत भर में . फैले हुए थे । उस समय ऐसा शायद ही कोई प्रसिद्ध नगर होगा, जहाँ का अति प्रसिद्ध, प्रतिष्ठित, धर्मात्मा, . अग्रगण्य श्रावक आपका अनन्य भक्त नहीं रहा हो। आपश्री के सदुपदेश से समस्त उत्तर भारत के प्रसिद्ध नगरों में इतने अधिक संख्या में महामहत्वशाली पुण्यकार्य, जैसे संघयात्रायें, यात्रायें, तप-उद्यापन, सार्मिकवात्सल्य, अंजन-श्लाका-प्राणप्रतिष्ठायें, जीर्णोद्धार, नवीन-मन्दिरों का निर्माणकार्य आदि हुये कि आपश्री का समय आप के नाम के पीछे 'सोमसुन्दरयुग' कहा जाता है। जितने जैन-प्रतिमा-लेख आपके युग के भारत भर में