________________
-:: भूमिका::
के बाद ही हुई है यह सुनिश्चित है । जैसा की आगे अन्य प्रमाण व विचारों को उपस्थित करते हुये मैं बतलाऊंगा कि वर्तमान श्वेताम्बर जैन ज्ञातियों में श्रीमाल, पौरवाड़, ओसवाल ये तीन प्रधान हैं । इनके वंशस्थापना का समय आठवीं शताब्दी का होना चाहिए।
मेरे उपर्युक्त मन्तव्य की कतिपय आधारभूत बातें इस प्रकार हैं:___ मुनिजिनविजयजीसंपादित एवं सिंघी-जैनग्रंथमाला से प्रकाशित 'जैनपुस्तक-प्रशस्तिसंग्रह' की नं० ३५ की संवत् १३६५ की लिखित 'कल्पसूत्र-कालिकाचार्यकथा' की प्रशस्ति में निम्नोक्त श्लोक आता है :
___ 'श्रीमालवंशोऽस्ति .......... 'विशालकीर्तिः श्री शांतिसूरि प्रतिबोधितडीडकाख्यः ।
श्री विक्रमाद्वेदन भर्महर्षि वत्सरे श्री आदिचैत्यकारापित नवहरे च (1) ॥१॥ अर्थात् श्रीमालवंश के श्रावक डीडाने जिसने कि शांतिसूरि द्वारा जैनधर्म का प्रतिबोध पाया था, संवत् ७०४ में नवहर में आदिनाथचैत्य बनाया।
__'जैन साहित्य-संशोधक' एवं 'जैनाचार्य आत्माराम-शताब्दी-स्मारकग्रंथ' में श्रीमालज्ञाति की एक प्राचीन वंशावली प्रकाशित हुई है । उपरोक्त वंशावलियों में यह सब से प्राचीन है। इसके प्रारम्भ में ही लिखा है :___'अथ भारद्वाजगोत्रे संवत् ७६५ वर्षे प्रतिबोधित श्रीश्रीमालज्ञातीय श्री शांतिनाथ गोष्ठिकः श्रीभित्रमालनगरे भारद्वायगोत्रे श्रेष्ठि तोड़ा तेनो वास पूर्वलि पोली, भट्टनै पाड़ी कोड़ी पांचनो व्यवहारियो तेहनी गोत्रजा अम्बाई...............।
उपर्युक्त दोनों प्रमाणों से आठवीं शताब्दी में जिन श्रावकों को जैनधर्म में प्रतिबोधित किया गया था, उनका उल्लेख है । जहाँ तक जैनसाहित्य का मैंने अनुशीलन किया है भिन्नमाल में जैनाचार्यों के पधारने एवं जैन धर्म-प्रचार करने का सबसे प्रथम प्रामाणिक उल्लेख 'कुवलयमाला' की प्रशस्ति में मिलता है।
'तस्स वि सिस्सो पयड़ो महाकई देवउत्तणामो ति।'
.............."सिवचन्द गणी य मयहरा त्ति (१) ॥२॥ अर्थात् महाकवि देवगुप्त के शिष्य शिवचन्द्रगणि जिनवन्दन के हेतु श्रीमालनगर में आकर स्थित हुये । प्रशस्ति की पूर्व गाथाओं के अनुसार यह पंजाब की ओर से इधर पधारे होंगे। उनके शिष्य यक्षदत्तगणि हुये, जिनके लब्धिसम्पन्न अनेक शिष्य हुये । जिन्होंने जैनमन्दिरों से गूर्जरदेश को (श्रीमालप्रदेश भी उस समय गुजरात की संज्ञा प्राप्त था ) सुशोभित किया । 'कुवलयमाला' की रचना संवत् ८३५ में जालोर में हुई है। उसके अनुसार शिवचन्द्रगणि का समय संवत् ७०० के लगभग का पड़ता है । इससे पूर्व श्रीमालनगर को जैनों की दृष्टि से प्रभास, प्रयाग और केदारक्षेत्र की भांति कुतीर्थ बतलाया गया है। 'निषिद्धचूर्णी' में इसका स्पष्ट उल्लेख है। इसलिये इससे पूर्व यहां वैदिक धर्मवालों का ही प्राबल्य होना चाहिए । यदि जैनधर्म का प्रचार भी उस समय वहां होता तो श्रीमालनगर को कुतीर्थ बतलाना वहां संभव नहीं था। ___ वर्तमान श्वेताम्बर जैन ज्ञातियों में से श्रीमाल, पौरवाड़ और ओसवाल तीनों का उत्पत्तिस्थान राजस्थान है और उसमें भी श्रीमालनगर इन तीनों ज्ञातियों की उत्पत्ति का केन्द्रस्थान है। सब से पहिले श्रीमालनगर में जिन्हें