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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ तृतीय
गांगा का परिवार सम्राट् अकबर द्वारा संमानित जगविख्यात तपागच्छेश श्रीमद् हीरविजयसूरिजी के भक्तों में अग्रगण्य था । श्रे० गांगा के मनरंगदेवी नामा धर्मपत्नी थी । मनरंगदेवी के वणवीर नामक पुत्र हुआ । वणवीर की स्त्री का नाम पसादेवी था । पसादेवी के चार पुत्र हुयेये - सा० राउत, लक्ष्मण, कर्मचन्द्र और दुहिचन्द्र । वणवीर के इन चारों पुत्रों ने श्री अचलगढ़तीर्थ की सपरिवार यात्रा की और वहाँ श्री चतुर्मुखविहाराख्य श्री ऋषभदेवजिनालय में वि० सं० १६६८ पौष शु० १५ गुरुवार को श्रीतपागच्छीय भ० श्री हीरविजयसूरि त० भ० श्रीविजयसेनसूरि त० श्री विजयतिलकसूरि भ० श्री विजयाणंदसूरि के कर-कमलों से पं० श्रीमान्विजयगणि शिष्य उ० श्री मृतविजयगणि के सहित पांच जिनेश्वर बिंबों को प्रतिष्ठित करवाये ।
श्रे० राउत के साहिबदेवी और नापूग नामा दो स्त्रियाँ थीं। इसके धर्मराज, हांसराज और धनराज नामक तीन पुत्र थे ।
० राउत ने अपने भ्राता लक्ष्मण, कर्मचन्द्र और दुहिचन्द्र के साथ श्री पार्श्वनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया और इसके तृतीय पुत्र सा० धनराज के पुत्र ने श्री कुंथुनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया ।
थे
श्रे० लक्ष्मण की स्त्री का नाम लक्ष्मीदेवी था । लक्ष्मीदेवी के भीमराज और हरिचन्द्र नामक दो पुत्र श्रे० लक्ष्मण ने अपने आता राउत, कर्मचन्द्र और दुहिचन्द्र के साथ में शांतिनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया तथा इसके द्वि० पुत्र हरिचन्द्र की स्त्री ने श्री आदिनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया ।
श्रे० कर्मचन्द्र की स्त्री का नाम अजबदेवी था । अजबदेवी ने श्री नेमिनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया |* गांगा [मनरंगदेवी] वणवीर [पसादेवी]
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धर्मराज
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राउत [साहिबदेवी, नागदेवी ] लक्ष्मण [ लक्ष्मीदेवी ] कर्मचन्द्र [अजबदेवी]
भीमराज हरिचन्द्र
हांसराज
धनराज
श्री कुंथुनाथ जिनालय में
I
दुहिचन्द्र
सं० देव के पुत्र-पौत्र
वि० सं० १५२७
यह कुंथुनाथ जिनालय श्री अचलगढ़तीर्थ की जैन - पीढ़ी के कार्यालय के पश्चिम में उससे जुड़ती जैनधर्मशाला के ऊपर की मंजिल के दक्षिण पक्ष पर बना है। मंदिर छोटा है, परन्तु चतुर्मुखादिनाथजिनालय से प्राचीन है ।
** श्र० प्रा० जे० ले० सं० भा० २ ले० ४७७-७८- ७६-८०