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खण्ड ] :: तीर्थ एवं मन्दिरों में प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका-प्रतिमाप्रतिष्ठादिकार्य-श्री राणकपुरतीर्थ :: [३०६
श्रे. जामद की पत्नी
वि० सं० १४८७ सं० १४८७ पौ० शु० २ रविवार को अंचलगच्छीय श्रीमद् मेरुतुङ्गसूरि के पट्टधर गच्छनायक श्री जयकीर्तिसूरि के उपदेश से पुंगलनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० भाणा के पुत्र श्रे० जामद की पत्नी ने देवकुलिका विनिर्मित करवाकर प्रतिष्ठित करवाई ।१
श्रे० भीमराज, खीमचन्द्र
वि० सं० १४८७ सं० १४८७ पौ० शु० २ रविवार को तपागच्छीय श्री देवसुन्दरसरि के पट्टधर श्री सोमसुन्दरसूरि श्रीमुनि सुन्दरमरि श्री जयचन्द्रसूरि श्री भुवनसुन्दरसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से पत्तनवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० लाला के पुत्र श्रे० नत्थमल, मेघराजा के पुत्र भीमराज, खीमचन्द्र ने अपने कल्याणार्थ देवकुलिका विनिर्मित करवाकर प्रतिष्ठित करवाई ।२
श्री धरणविहार-राणकपुरतीर्थ-श्रीत्रैलोक्यप्रासाद-श्रीआदिनाथ-जिनालय में
प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थों के देवकुलिका-प्रतिमाप्रतिष्ठादि कार्य
सं० भीमा
वि० सं० १५०७ संघवी चापा और संघवी साजण दो भाई थे। सं० चापा ने उक्त प्रासाद में नैऋत्यकोण में सशिरुर महाधर-देवकुलिका बनवाई थी । सं० साजण की भार्या श्रीदेवी का पुत्र सं० भीमा बड़ा यशस्वी हुआ है । सं० भीमा से सं. लक्ष्मण और सारंग दो बड़े भाई और थे । सं० भीमा के तीन स्त्रियाँ थीं-भीमिणी, नानलदेवी और पउमादेवी और यशवंत नामक पुत्र था । भीमा ने अपने काका द्वारा विनिर्मित नैऋत्यकोण की महाधर-देवकुलिका में श्री रत्नशेखरसूरि द्वारा वि० सं० १५०७ चैत्र कृ. ५ को निम्नवत् विबादि प्रतिष्ठित करवा कर स्थापित किये।
१-पूर्वाभिमुख श्री महावीरबिंब का परिकर
२-अपने चाचा चांपा के श्रेयार्थ उत्तराभिमुख श्री अजितनाथबिंब । इस प्रतिमा का परिकर भी वि० सं० १५११ आषाढ शु. २ को श्री रत्नशेखरसूरि के द्वारा ही प्रतिष्ठित करवाया गया था ।
१-२-जै० प्र० ले० सं० ले० २७७, २७८ *०प्र० ० ले०सं० के लेखांक १६० में 'भाड़ा' सत सा० 'झामट' लिखा है और १६१ में लेखांक २७८ भी:लिखित है। +मेघराज के एक पुत्र रत्नचन्द्र का होना उससे और पाया जाता है।
सन् १९५० के जून के द्वितीय सप्ताह में मैं श्री राणकपुरतीर्थ का अवलोकन श्रीप्राग्वाट-इतिहास की रचना के सम्बन्ध में करने के लिये गया था तथा वहाँ ४ दिवस पर्यंत ठहर कर जो वहाँ के लेख शब्दान्तरित कर सका उनके आधार पर उक्त वर्णन है। -लेखक