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अर्बुदगिरिस्थ पित्तलहरवसहि (भीमवसहि): जैनबंधुओं के अद्भुत प्रभुप्रेम को प्रकट सिद्ध करनेवाली भगवान् आदिनाथ को मण १०८ (प्राचीन तोल) को पंचधातुमयी पित्तलप्रतिमा। देखिये पृ० ३०२ पर। (प्राग्वाट-इतिहास के उद्देश्य के बाहर है; परन्तु पाठकों की
भक्ति एवं शिल्पपरायणा अभिरुचि को दृष्टि में रख कर यह प्रतिमाचित्र दिया गया है।)