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________________ २९८] :: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय वर्द्धमानसरिजी के कर-कमलों से प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० सागर के पुत्र श्रे० पासदेव की स्त्री माधी (माध्वी) की कुक्षी से उत्पन्न पुत्री पाल्ही, पुत्र हरिचन्द्र की स्त्री देवश्री के पुत्र विजयड़ ने अपनी स्त्री विजयश्री और पुत्र प्रहुणसिंह आदि परिवार के साथ में प्रतिष्ठित करवाई थी ।१ ठ० वयजल वि० सं० १३७८ श्री विमलवसतिकाख्य श्री आदिनाथ-जिनालय की छट्ठी देवकुलिका में प्राग्वाटज्ञातीय बीजड़ के पुत्र ठ० वयजल ने श्रे० धरणिग और जिनदेव के सहित ठ० हरिपाल के श्रेयार्थ श्री मुनिसुव्रतस्वामीबिंब को वि० सं० १३७८ में श्री श्रीतिलकसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया ।२।। तीन जिन-चतुर्विशतिपट्ट वि० सं० १३७८ श्री विमलवसतिकाख्य श्री आदिनाथ-जिनालय की बीसवीं देवकुलिका में संगमरमर-प्रस्तर के बने हुये तीन जिनचतुर्विंशतिपट्ट हैं । इनकी प्रतिष्ठा वि० सं० १३७८ ज्येष्ठ कृ० ५ को निम्न व्यक्तियों के द्वारा करवाई गई थी। प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० महयण की स्त्री महणदेवी का पुत्र गेहल की स्त्री मोहादेवी का पुत्र..... "स्त्रीशृङ्गारदेवी के अभयसिंह, रत्नसिंह और समर नामक पुत्र थे । इनमें से समर ने अपनी स्त्री हंसल और पुत्र सिंह तथा मौकल आदि कुटुम्बीजनों के साथ मूलनायक श्री आदिनाथ आदि चौवीस जिनेश्वरों का एक जिनपट्ट प्रतिष्ठित करवाया ।३ प्राग्वाटज्ञातीय व्य...... की स्त्री मोरादेवी के पुत्र जसपाल, छाड़ा,....."सीहड़ और नरसिंह थे। इनमें से शाह छाड़ा ने अपनी स्त्री वाली और पुत्र के सहित दूसरा जिनपट्ट प्रतिष्ठित करवाया ।४ ।। _श्रे० साधु और उसकी स्त्री सोहगादेवी के कल्याण के लिये इनके पुत्र श्रे० हनु स्त्री सहजल, श्रे० लूणा स्त्री लूणादेवी, श्रे० जेसल स्त्री रयणदेवी और श्रे वीरपाल और उसकी स्त्री आदि कुटुम्ब के समुदाय ने सम्मिलित रूप से तीसरा जिन-चतुर्विंशति-पट्ट प्रतिष्ठित करवाया ।५ श्रेष्ठि जीवा वि० सं० १३८२ श्री विमलवसतिकाख्य श्री आदिनाथ-जिनालय की नववी देवकुलिका में वि० सं० १३८२ कार्तिक शु० १५ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० रावी के पुत्र ठ० मंतण और राजड़ के कल्याण के लिये राजड़ के पुत्र जीवा ने मू० ना० श्री नेमिनाथ भगवान् की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई ।६ ।। अ० प्रा० ० ले० सं० भा० २ ले० १३५० । ३८ माण्डव्यपुरवास्तव्य उपकेशज्ञातीय सा० लल्ल और वीजड़ ने वि० सं०१३७८ ज्येष्ठ शु०६ को श्रीमद् ज्ञानचन्द्रसरिजी न में श्री विमलवसतिका का बहुत द्रव्य व्यय करके जीणोंद्धार करवाया था। ऊपर के तीनों जिनपट्टों की स्थापना ज्येष्ट शु०५ को केवल चार दिवस पूर्व ही हुई थी। हो सकता है जिनपट्टों की प्रतिष्ठा भी श्री ज्ञानचन्द्रसरिजी ने ही की हो। अ० प्रा० ० ले० सं० भा०२ ले०८८,८९,०४६
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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