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खण्ड] :: न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण-जीर्णोद्धार कराने वाले प्राज्ञा० सद्गृहस्थ-सं० सहसा :: [२७७
संसारदेवी के खीमराज और अनुपमादेवी के देवराज नामक पुत्र हुये। खीमराज के भी रमादेवी और कर्पूर(कपूर)देवी दो स्त्रियाँ थीं । कपूरदेवी के जयमल और मनजी नामक दो पुत्र हुये । सं० सहसा ग्यासुद्दीन का प्रमुख मंत्री बना। सं० सहसा जैसा शूरवीर एवं राजनीतिज्ञ था, वैसा ही दानवीर एवं धर्मवीर भी था । उसने अचलगढ़ में श्री चतुर्मुखआदिनाथ नामक एक अति विशाल जिनालय बनवाया और अपने परिवारसहित बहुत बड़ा संघ निकाल कर उसमें श्री मु० ना० आदिनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया। जिनालय और उसकी प्रतिष्ठा का वर्णन नीचे दिया जाता है ।
सं० सहसा द्वारा विनिर्मित अचलगढ़स्थ श्री चतुमुख-आदिनाथ-शिखरबद्धजिनालय
अबुदाचल पर वैसे बारह ग्राम बसे हुए कहे जाते हैं, परन्तु इस समय चौदह ग्राम बसते हैं। भारतवर्ष में वैसे तो अति ऊंचा पर्वत हिमालय है; परन्तु वह पर्वत जिस पर ग्राम वसते हों, वैसा ऊंचे से ऊंचा पर्वत अर्बुदगिरि
है। गुरुशिखर नामक इसकी चोटी समुद्रस्तल से ५६५० फीट लगभग ऊंची है । अचलगढ़
ग्रामों के स्थल ४००० फीट से अधिक ऊंचे नहीं है। अर्बुदपर्वत बीस मील लम्बा और आठ मील चौड़ा है।
अर्बुदपर्वत के ऊपर जाने के लिए वैसे चारों ओर से अनेक पदमार्ग हैं, परन्तु अधिक व्यवहृत और प्रसिद्ध तथा सुविधापूर्ण मार्ग खराड़ी से जाता है । खराड़ी से आबू-केम्प तक पक्की डामर रोड़ १७॥ मील लंबी बनी है । यहाँ से देलवाड़ा, ओरिया होकर अचलगढ़ को भी पक्की सड़क जाती है जो ५॥ मील लंबी है। ओरिया से गुरुशिखर को पदमार्ग जाता है। ओरिया से अचलगढ़ १॥ मील के अन्तर पर पूर्व-दक्षिण में एक ऊंची पहाड़ी पर बसा है । दुर्ग में वसती बहुत ही थोड़ी है। यहाँ अचलेश्वर-महादेव का अति प्राचीन मन्दिर है तथा महाराणा कुभा का बनाया हुआ पन्द्रहवीं शताब्दी का गढ़ है । इन दोनों नामों के योग पर यह (अचल+गढ़) अचलगढ़ कहलाता है । गुरुशिखर की चोटी तथा उस पर बने हुये मठ और श्री दत्तात्रेय का स्थानादि यहाँ से अच्छी प्रकार दिखाई देते हैं । अचलगढ़ की पहाड़ी का ऊंचाई में स्थान गुरुशिखर के बाद ही आता है। वैसे दोनों पर्वत आमने-सामने से एक दूसरे से ४ मील के अन्तर पर ही आ गये हैं। दोनों पर्वतों का और उनके बीच भाग का दृश्य प्रकृति की मनोहारिणी सुषुमा के कारण अत्यन्त ही आकर्षक, समृद्ध और नैसर्गिक है। ___अचलगढ़ दुर्ग के सात द्वार थे। जिनमें से दो द्वार ही ठीक स्थिति में रह गये हैं। शेष चिह्नशेष रह गये हैं । ये द्वार पोल के नामों से क्रमशः अचलेश्वरपोल, गणेशपोल, हनुमानपोल; चंपा पोल, भैरवपोल, चामुण्डापोल श्री चतुर्मुखा-आदिनाथ- कहे जाते हैं । सातवां द्वार कुंभाराणा के महलों का है । कुंभाराणा के महलों के खण्डर चैत्यालय और उसकी रचना आज भी विद्यमान हैं। श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिनालय भैरवपोल के पश्चात् एक जैसा सं० धरणा का इतिहास लिखते समय यह लिखा जा चुका है कि सं० धरणा बादशाह गजनीखों के समय में दो वर्ष पर्यन्त मांडवगढ़ में रहा था और ज्योहि मुहम्मद खिलजी बादशाह बना,वह नादिया श्रा गया था। अर्थ यह कि मुहम्मद खिलजी सं० धरणा के परिवार