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खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण - जीर्णोद्धार कराने वाले प्रा०झा० सद्गृहस्थ-श्रे० श्रीपाल :: [२५७
पर्वत [लक्ष्मी ]
डुङ्गर [लीलादेवी]
T
सहस्रवीर पोइमा (फोका) मंगादेवी हर्षराज
[मति]
[ककू]
उदयकर्ण
१
नरवद [हर्षादेवी] I
भास्वर [रढ़ी ]
कान्हा
[खोखीदेवी, मेलादेवी]
वस्तुपाल [वल्हादेवी]
श्री मुण्डस्थलमहातीर्थ में श्री महावीर जिनालय का जीर्णोद्धार कराने वाला कीर्त्तिशाली श्रेष्ठ श्रीपाल
वि० सं० १४२६
श्रीमुण्डस्थलमहातीर्थ दाचल के नीचे खराड़ी ग्राम से लगभग चार मील के अन्तर पर पश्चिम दिशा
मूंगला नाम से छोटे-से ग्राम के रूप में एक जैन मन्दिर के सहारे जैनतीर्थ है। विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में जब चन्द्रावती का राज्य पूर्ण समृद्ध और उन्नतशील था, तब आज का मूंगथला ग्राम अनेक जैन मन्दिरों से सुशोभित श्री मुंडस्थलमहातीर्थ के रूप में सुशोभित था ।
पुत्र
अभी जो श्रीमहावीरस्वामी का देवालय विद्यमान् है, उसका जीर्णोद्धार ठ० महीपाल की स्त्री रूपेणी के ० श्रीपाल ने करवा कर वि० सं० १४२६ वैशाख शु० २ रविवार को श्री कोरंटगच्छीय श्रीनन्नाचार्यसंतानीय श्रीककसूरिपट्टालंकार श्रीमद् सावदेवसूरि के करकमलों से कलश- दण्ड प्रतिष्ठित करवाये तथा चौवीस देवकुलिकाथों में बिंबप्रतिष्ठा करवाई और अन्य अनेक जिनबिंबों की प्रतिष्ठा करवाई | २
१-प्र० सं० प्र० भा० पृ० ५७ ( भगवतीसूत्रवृत्ति की प्रशस्ति) । प्र०सं० द्वि० भा० पृ० ७२ (अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति की प्रशस्ति ) प्र० सं० द्वि० भा० पृ० ७६ (श्री श्रौषनियुक्ति की प्रशस्ति) । प्र० सं० द्वि० भा० पृ० १६१ (श्रीचैत्यवंदनसूत्र विवरणम् ) जै० धा० प्र० ले० सं० भा० १ ले० ११५ । जै० धा० प्र० ले० सं० भा० २ ० २६४, ६१३, ६७३, ११३६ प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले०८
जै० पु० प्र० सं० प्र० भा० पृ० १८ [१६] (भगवतीसूत्र - पुस्तक प्रशस्ति) । २ - प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले २७४, २७५