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खण्ड] ::न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवानमय की सेवा करने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ-श्रा० सुहड़ादेवी [२३५
राणक और उसका परिवार और सुहड़ादेवी का 'पर्युषणा-कल्प' का लिखाना
श्रे० राखक का विवाह प्राग्वाटज्ञातीय व्यवहारीय कुलचन्द्र की धर्मपत्नी जासलदेवी की गुणगर्भा पुत्री राजलदेवी के साथ हुआ । राजलदेवी की कुक्षी से यशस्वी संग्रामसिंह नामक पुत्र हुआ।
संग्रामसिंह व्यापारकुशल एवं विश्रुत व्यक्ति था। प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० अभयकुमार की धर्मपत्नी सलक्षणा की कुक्षी से उत्पन्न सुहड़ादेवी नामा दानदयाप्रिया कन्या से संग्रामसिंह का विवाह हुआ। इसके हर्षराज, कटुकराज और गौरदेवी तीन संतानें हुई। हर्षराज का विवाह लक्ष्मीदेवी से हुआ। हर्षराज सुपुत्र और माता-पिता का परम भक्त था । उसकी स्त्री भी पतिव्रता एवं विनीतात्मा थी। ____ संग्रामसिंह का दूसरा पुत्र कटुकराज भी बड़ा ही सज्जन एवं कृपालु था । सुहड़ादेवी ने श्रीमलधारीसरिजी के शुभोपदेश को श्रवण करके अपने पुत्र और पति की सहायता से 'श्रीपर्युषणाकल्पपुस्तिका' पुण्यप्राप्ति के अर्थ लिखवाई । अनुमानतः यह कार्य विक्रमीय तेरहवीं शताब्दी में हुआ है ।
सोढुका
___ यह पद्मसिंह की ज्येष्ठा पुत्री थी और श्रे०. राणक से छोटी थी। इसने दीक्षा ग्रहण की और चारित्र पाल कर अपने जीवन को सार्थक किया ।।
वंश-वृक्ष (१)
भरत
यशोनाग श्रीकरण पयसिंह [तिहुणदेनी]
यशोराज [बहवदेवी] आशराज सोमराज राणक [राजलदेवी] सोदुकादेवी : सोहिणी
| संग्रामसिंह [६सुहड़ादेवी] पृथ्वीसिंह २ पेथुका प्रहलादन [माधला] ७सज्जनादेवी ।
। । हर्षराज लक्ष्मीदेवी] कटुकराज गौरदेवी देवसिंह सोमसिंह पद्मला समला राणी
जै० पु०प्र० सं० प्र०१००१२ (पर्युषणाकल्पपुस्तिका) 1-D.C. M. P. (G.O. S. Vo. No. LXXVI.) P. 380-2 (48)