SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०क्षा सद्गृहस्थ-पा० सुहहादेवी :: [ २३३ था। एक दिन श्रे० धीना ने श्रीमद् देवेन्द्रमुनि का सदुपदेश श्रवण किया। इस उपदेश को श्रवण करके उसने ज्ञानदान का माहात्म्य समझा और अपने स्वोपार्जित द्रव्य का सदुपयोग करके उसने पंडितजनों के वाचनार्थ श्री 'उत्तराध्ययनलघुत्ति' नामक ग्रन्थ की एक प्रति ताड़पत्र पर वि० सं० १२६६ चैत्र कृ० १० सोमवार को लिखवाई और वि० सं० १३०१ आ. शु० १२ शुक्रवार को 'श्रीअनुयोगद्वारवृत्ति' और शु० १५ को 'अनुयोगद्वारसूत्र' की प्रतियाँ लिखवाई । श्रे० धीना धवलकपुरवासी श्रे० पासदेव (वासदेव) का पुत्र था ।१ श्रेष्ठि मुहुणा और पूना ___ हुड़ायाद्रपुर (हड़ाद्रा) में श्री पार्श्वनाथजिनालय का गोष्ठिक प्राग्वाटज्ञातीय विख्यात श्रेष्ठि चासपा हो गया है। वह घोषपुरीयगच्छाधिपति श्रीमद् भावदेवसूरि के पट्टधर जयप्रभसूरि का परम श्रावक था। श्रे चासपा की धर्मपरायणा स्त्री जासलदेवी की कुक्षी से गुणसंपन्न लक्षणसम्पूर्ण धर्मसंयुक्त सहदेव, खेता और लखमा नामक तीन अति प्रसिद्ध पुत्र उत्पन्न हुये। ज्येष्ठ पुत्र श्रे० सहदेव की पत्नी नागलदेवी की कुक्षी से श्रे० आमा और आहा नामक विख्यात धर्मधुर तथा दक्ष दो पुत्र पैदा हुये। __श्रे० आमा की पत्नी का नाम रंभादेवी था । श्राविका रंभादेवी सचमुच रंभा ही थी । वह अत्यधिक सुशीला, सुगुणा और प्रसिद्ध पिता की पुत्री थी । उसके मुहुणा, पूना और हरदेव नामक तीन पुण्यशाली पुत्र हुये थे। श्रे० मुहुणा और पूना ने भ्राता हरदेव के सहित माता-पिता के श्रेयार्थ कल्पसूत्र की प्रति गुरुमहाराज को श्रद्धापूर्वक अर्पित की।२ श्रा० सूहड़ादेवी अनुमानतः विक्रम की तेरहवीं शताब्दी भरत और उसका यशस्वी पौत्र पद्मसिंह और उसका परिवार अति गौरवशाली महाप्रतापी प्राग्वाटवंश में भरत नामक अति पुण्यशाली, सदाचारी, धर्मधारी पुरुष हो गया है। भरत का पुत्र यशोनाग हुआ। यशोनाग गुणों का आकर और दिव्य भाग्यशाली था। यशोनाग के पद्मसिंह नामक महापराक्रमी पुत्र हुआ। वह महाराजा का श्रीकरणपद का धारण करनेवाला हुआ। पद्मसिंह की स्त्री तिहुणदेवी थी। तिहुणदेवी ने अपने दिव्य गुणों से पति, श्वसुर एवं परिजनों के हृदयों को जीत लिया था। १-प्र०सं० प्र० भा० ता०प्र०३१ पु०२५ (अनुयोगद्वारवृत्ति), ता० प्र०५८ पृ. ४८ (अनुयोगद्वारसूत्र), ता०प्र०७५ पृ० ५१ (उत्तराध्ययनलघुवृत्ति)। जै• पु० प्र० सं० प्र०१६७ पृ० १२४ (अनुयोगद्वारवृत्ति) २-D.C.M.P. (G.O. S. Vo• No.LxxVI) P. 152 'हुडायाद्रपुर संभव है सिरोहीनराज्यान्तर्गत हणादा ग्राम हो।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy