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________________ खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०मा० सद्गृहस्थ-श्रे० रामदेव :: [ २३९. श्रेष्ठि जगतसिंह वि० सं० १२२८ विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में गूर्जरसम्राट् कुमारपाल के राज्यकाल में प्राग्वाटज्ञातीय उ० कटुकराज प्रसिद्ध पुरुष हो गया है । उसके ठ० सोलाक नामक पुत्र और राजूदेवी नामा पुत्री थी। श्राविका राजूदेवी के पुत्र श्रे. जगतसिंह ने वि० सं० १२२८ श्रावण शु० १ सोमवार को देवेन्द्रसुरिकृत १. कर्मविपाकवृत्ति २. योगशास्त्र ३. वीतरामस्तवन को अपने न्यायोपार्जित द्रव्य का व्यय करके लिखवाये ।। श्रोष्ठि रामदेव वि० सं० १२३६ विक्रम की बारहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय प्रसिद्ध पुरुष सहवू हो गया है । श्रे० सहन बड़ा मुखी और धर्मात्मा पुरुष था । उसकी स्त्री का नाम गाजीदेवी था। वह बड़ी ही चतुरा, सुशीला और धर्मकर्मरता स्त्रीशिरोमणी नारी थी। श्रा० गाजीदेवी के मणिभद्र, शालिभद्र और सलह नामक तीन पुत्र थे। श्री. मणिभद्र की स्त्री का नाम बाचीवाई था, जो अति गुणवती स्त्री थी। श्रा० बाबीबाई के वेल्लक नामक पुत्र और सहरि नामको शीलगुणधारिणी कन्या थी। श्रे. शालिभद्र की स्त्री का नाम थिरमति था, जिसकी कुक्षी से धवल; वेलिग, यशोधवल, रामदेव, ब्रह्मदेव और यशोदेव नामक छः पुत्र और वीरीदेवी नाम की पुत्री उत्पन्न हुई थी। श्रे० धवल का पुत्र रासदेव बड़ा ही विवेकशील था । श्रे० वेलिग का पुत्र रासचन्द्र भी बड़ा ही कलावान् था । श्रे० रामदेव ने चन्द्रगच्छीय श्रीमद् अभयदेवसरि के पट्टधर हरिभद्रसरि के शिष्यवर अजितसिंहमूरि के शिष्यवर हेमसरि के चरणसेवक श्रीमद् महेन्द्रप्रभु के शास्त्रोपदेश को श्रवण करके श्री नेमिचन्द्रसरिकृत 'श्रीमहावीरचरित्र' को वि० सं० १२३६ ज्येष्ठ शुक्ला १४ शनिश्चर को ताइपत्र पर लिखाया और उस मनोहर अति को श्रद्धापूर्वक श्रीमद् भुवनचन्द्रगति को समर्पित की। 1-D. C. M. P. (G. O. S. VO. No. LXXVI.) P. 104, 105, (158, 159) 2-D.C.M.P. (G.O. SVo. No. LXXVI) P.286-7 (37) .
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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