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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
श्रेष्ठ जिह्वा वि० सं० १२१२
विक्रम की बारहवीं शताब्दी के अन्त में प्राग्वाटज्ञातीय विमलतरमति विश्वविख्यात कीर्तिशाली श्रे० वाहल नामक जिनेश्वरभक्त एवं न्यायशील सुश्रावक हो गया है । उसकी गुणगर्भा साधुशीला जिनमती नामा गृहिणी थी । श्राविका जिनमती के दो पुत्र उत्पन्न हुए थे । ज्येष्ठ पुत्र अक्षदेव था । श्रे० अक्षदेव की स्त्री भोयणीदेवी थी । दोनों पति-पत्नी परम जिनेश्वरभक्त, अति दयालु और धर्मात्मा थे । वे सदा दीन- श्रनाथ जनों की सहायता करते थे । उनके यशोदेव, गुणदेव और जिह्वा नामक तीन अति गुणशाली पुत्र और जासीदेवी नामा पुत्री थी । श्रे० जिह्वा तीनों भ्राताओं में अधिक धर्मी और उदारचेता पुरुष था । वह शास्त्राभ्यास का बड़ा प्रेमी था । उसने उमता नामक व्यास के द्वारा श्री 'आवश्यकनियुक्ति' वि० सं० १२१२ मार्ग० शु० १० रविवार को लिखवाई
श्रेष्ठि राहड़ वि० सं० १२२७
द्वितीय
विक्रम की बारहवीं शताब्दी में प्रतिष्ठित एवं गौरवशाली प्राग्वाटज्ञातीय एक कुल में सत्यपुर नामक नगर में सिद्धनाग नामक एक विशिष्टगुणी श्रावक हो गया है। उसके पति नामा पतिपरायणा स्त्री थी । इस स्त्री के प्रतिष्ठित चार पुत्र हुये | ज्येष्ठ पुत्र पोढ़क और उससे छोटे क्रमश: वीरड़, वर्धन और द्रोणक थे । चारों भ्राताओं ने दधिपद नामक नगर में श्री शांतिनाथ जिनालय में पीतल की स्वर्ण जैसी सुन्दर प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई थी ।
ज्येष्ठ पोढ़क बृहद् परिवारवाला हुआ । उसके अम्बुदत्त, आम्बुवर्धन, सज्जन नाम के तीन पुत्र और यशश्री और शिवा नाम की दो पुत्रियाँ हुई । तृतीय पुत्र सज्जन की स्त्री महलच्छिदेवी की कुक्षी से पाँच पुत्र धवल, वीशल, देशल, राहड़ और बाहड़ तथा शान्तिका और धांधिका नामक दो पुत्रियाँ हुई ।
श्रेष्ठ सज्जन ने श्री पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ की निर्मल प्रस्तर की दो प्रतिमायें अपने भ्राता के श्रेयार्थ विनिर्मित करवा कर मड्डाहृत नाम के नगर के महावीरजिनालय में प्रतिष्ठित कीं। इस समय श्रे० सज्जन मड्डाहत नगर में ही रहने लग गया था ।
श्रेष्ठ धवल सज्जन का ज्येष्ठ पुत्र था । श्रे० धवल की स्त्री का नाम भल्लिणी था । उसके दो प्रसिद्ध पुत्र वीरचन्द्र और देवचन्द्र तथा एक पुत्री सिरी हुई। वीरचन्द्र के विजय, अजय, राजा, यावं और सरण नाम के
*D. C.M. P. (G, 0. S. Vo. LXXVI) P. 150 (231) जै० पु० प्र० सं० ता० प्र० ७३ पृ० ७०-७१ (आवश्यकर्नियुक्ति )