SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स] : न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा०-शा० सद्गृहस्थ-श्रे० धीणाक :: [२२५ बरदेव की स्त्री वान्हावि नामा थी । वाल्हावि लक्ष्मीस्वरूपा स्त्री थी । उसके सादल और वज्रसिंह नाम के पुत्र और सहजू नाम की सुशीला पुत्री उत्पन्न हुई । बड़े पुत्र साढ़ल का विवाह राणदेवी नामा एक सती-साध्वी कन्या से हुआ । साढ़ल को महासती राण से पाँच पुत्रों की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ पुत्र धीणा था । धीणा शुद्धात्मा और धर्मबुद्धि था। अन्य पुत्र क्षेमसिंह, भीमसिंह, देवसिंह, महणसिंह क्रमशः उत्पन्न हुये। पाँचों पुत्र बड़े धर्मात्मा और उदार हृदया थे। इनमें से दूसरे और चौथे पुत्र क्षेमसिंह और देवसिंह ने श्रीमद् जगच्चन्द्रसूरि के कर-कमलों से दीचा ग्रहण की पत्र धीणा का विवाह कडू नामा कन्या से हुआ था। कड के मोद नामक पुत्र हुआ। धीया के दो भ्राता तो दीक्षा ले चुके थे। जैसे वे धर्मवृत्ति थे, वैसा ही धीणा भी दृढ़ धर्मी और साहित्यसेवी था। एक दिन गुरु जगच्चन्द्रसरि का सदपदेश श्रवण कर इसको स्मरण आया कि भोग और यौवन चंचल एवं अस्थिर हैं। ज्ञानी इनकी चंचलता से सदा सावधान रहते हैं और अपने धन और अपनी देह का सदुपयोग करने में सदा तत्पर रहते हैं। बृहद्मच्छीय श्रीमद् नेमिचन्द्रमरिकृत 'श्री आख्यानमणिकोश' की वि० सं० ११६० में श्रीमद् नेमिचन्द्रसूरि के प्रशिष्य विद्वद्प्रवर श्रीमद् आम्रदेवसरि ने वृत्ति लिखी और श्रेष्ठि धीणा ने 'श्री आख्यानमणिकोशसवृत्ति' को विद्वानों के पढ़नार्थ ताड़-पत्र पर लिखवाकर अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग किया। यह प्रति इस समय खम्भाव के श्री शान्तिनाथ-प्राचीन ताड़पत्रीय जैन ज्ञान-भण्डार में विद्यमान है। वंश-बृक्ष पूर्णदेव सलषण वरदेव [वाल्हावि जिनदेव साढ़ल (राणदेवी) ....."सिंह वज्रसिंह सहजूकुमारी धीणा [कड़ -चेमसिंह भीमसिंह देवसिंह महणसिंह श्री खं० शा० प्रा० ता० जै० ज्ञा० भ० (सूची-पत्र) पृ०१६ प्र०सं० प्र०भा० ता०प्र० ३५ पृ) २६, २७ । जै० पु.प्र. सं० प्र०६० पृ०८३ . (श्री आल्यानमरिएकोशसवृत्ति)
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy