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________________ २१६] :: प्राग्वाट-इतिहास :: [ द्वितीय श्रीमद् तपगच्छनायक विजयसिंहमूरि-पट्टालंकार श्रीमद् सोमप्रभसूरि विक्रमीय तेरहवीं शताब्दी सुधर्मा स्वामी से बयालीसवें पट्टधर आचार्य श्रीमद्विजयसिंहमूरि हुये हैं। इनके पट्टधर श्रीमद् सोमप्रभम्ररि और मणिरत्नमरि हुये । सोमप्रभसरि अधिक प्रभावक एवं प्रसिद्ध विद्वान् थे। इनका जन्म प्राग्वाटवंश में .हुआ था । इनके पिता का नाम सर्वदेव और प्रपिता का नाम जिनदेव था। जिनदेव कुल-परिचय और गुरुवंश आर गुरुवश किसी राजा का मंत्री था । सोमप्रभसूरि ने अल्पायु में ही दीक्षा ग्रहण की थी। ये कुशाग्रबुद्धि एवं कठिन परिश्रमी थे। थोड़े वर्षों में ही ये काव्य, छंद, अलंकार, व्याकरण के उद्भट विद्वान् बन गये तथा संस्कृत-प्राकृत एवं मागधी भाषाओं पर इनका पूरा २ अधिकार हो गया । गुरु विजयसिंहसूरि ने इनको सर्व प्रकार से योग्य समझकर अपना प्रमुख शिष्य बनाया और तदनुसार ये विजयसिंहसरि के स्वर्गगमन के पश्चात् वेतालीसवें आचार्य हुये। ___ श्रीमद् वादी देवसरि और प्रसिद्ध महान् विद्वान् कलिकाल-सर्वज्ञ, गूर्जरसम्राट् कुमारपाल-प्रतिबोधक श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य इनके अभिभावुक थे । गूर्जरसम्राट् सिद्धराज जयसिंहदेव, कुमारपाल, अजयदेव, मूलराज की समकालीन पुरुष और इनकी राज्यसभाओं में इनका सतत् मान रहा । कवि सिद्धपाल तथा आचार्य अजितदेव और प्रतिष्ठा विजयसिंहमूरि जैसे प्रभावक एवं तेजस्वी गुरु विद्वानों का इनको निरन्तर संग प्राप्त रहा । इनके बनाये हुये प्रसिद्ध ग्रन्थ चार हैं। (१) श्रीसुमतिनाथ-चरित्र—यह ग्रन्थ प्राकृत-भाषा में ९८२१ श्लोकों में रचा गया है । ग्रन्थ में उत्तमोत्तम रोचक एवं उपदेशक कथाओं की रचना है। (२) सिंदुर-प्रकर-इसको 'सोमशतक' भी कहते हैं, क्योंकि इसमें सौ श्लोकों की रचना है । इस ग्रन्थ में विद्वान् लेखक ने अहिंसा, सत्य, शील, सौजन्य, क्षमा, दया आदि दिव्य विषयों पर सरल एवं सुन्दर संस्कृत भाषा में बड़े रोचक ढंग से लिखा है। १-५० कल्याणविजयजीरचित श्री तपागच्छपट्टावली। पृ०१५१ २-श्री कुमारपाल-प्रतिबोध की प्रस्तावना (गुजराती) पृ० ५ 'तेस्वादिमाद् विजयसिंहगुरु ४३ र्बभासे, विद्यातपोभिरभितः प्रथमो ऽथ तस्मात् । सोमप्रभो ४४ मुनिपतिविदितः शतार्थीत्यासीद् गुणी च मुगिरलगुरुर्द्वितीयः ॥७७।। गुर्वावली पृ०८ ... 'यम्य प्रथमः शिष्यः शतार्थितया विख्यातः ।। श्री सोमप्रभसरिः, द्वितीयस्तु मणिरत्नसरिया से होती है। यह ग्रंथ प्राकृत में है, परन्तु अन्त की कुछ कथा-कहानया सोपा .श्रीमगिरत्नसरि । जै० स० प्रकाश वर्ष ७ दीपोत्सवी अंक पृ० १४०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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