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________________ २१० ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: [ द्वितीय माँगी की । वीरनाग और जिनदेवी मुनिचन्द्रसूरि के भक्त तो थे ही, फिर भृगुकच्छ के श्रीसंघ के आग्रह एवं उद्बोधन पर उन्होंने प्राणों से प्यारे तेजस्वी पुत्र पूर्णचन्द्र को श्राचार्य श्री के चरणों में समर्पित कर दिया । भृगुकच्छ के श्री संघ ने वीरनाग एवं जिनदेवी के भरण-पोषण, रहने आदि का समुचित प्रबन्ध संघ की ओर से कर दिया । श्रीमद् मुनिचन्द्रसूरि ने भृगुकच्छनगर में ही वि० सं० ११५३ में पूर्णचन्द्र को उसके माता-पिता की आज्ञा लेकर शुभ मुहूर्त में दीक्षा दे दी और उसका नाम रामचन्द्र रक्खा । योग्य गुरु की सेवा में रहकर मुनि रामचन्द्र पूर्णचन्द्र को दीक्षा, उनका ने खूब विद्याभ्यास किया। कुशाग्रबुद्धि होने से वे थोड़े वर्षों में ही अनेक विषयों में विद्याध्ययन और सूरिपद पारंगत एवं संस्कृत, प्राकृत के उद्भट विद्वान् हो गये । श्रीमद् मुनिचन्द्रसूरि के समस्त शिष्यों में वे अग्रणी गिने जाने लगे। मुनि रामचन्द्र जैसे विद्वान् थे, वैसे उच्च कोटि के श्राचारवान् साधु भी थे। इनकी तर्कशक्ति बड़ी प्रबल एवं अद्वितीय थी। इनके समय में धर्मवादों का बड़ा जोर था । प्रसिद्ध नगरों में आये दिन धर्मवाद होते ही रहते थे । मुनि रामचन्द्र भी धर्मवादों में भाग लेने लगे और अन्य मत एवं धर्मों के वादी आ कर इनसे वाद करने लगे । फलस्वरूप इनको दूर-दूर तक विहार करना पड़ता था | राजस्थान, मालवा, गूर्जर, काठियावाड़, भृगुकच्छ, पंजाब, काश्मीर, दक्षिणभारत इनकी विहार-भूमि रही और इन्होंने अलगअलग प्रसिद्ध नगरों में अलग-अलग वादियों को परास्त किया और अपनी कीर्त्ति फैलाई । इनकी कीर्त्ति, विद्वत्ता, प्रखर वादनिपुणता से मुग्ध होकर श्रीमद् मुनिचन्द्रसूरि ने इनको वि० सं० १९७४ में आचार्यपदवी से विभूषित किया और देवरि नाम रक्खा। कुछ प्रतिवादियों एवं वादस्थलों के नाम निम्नवत् हैं: वादी १. ब्राह्मणपंडित ३. ५. भागवत शिवभूति ७. धरणीधर ६. कृष्णपंडित नगर धवलकपुर सत्यपुर चित्तौड़ धारानगरी भृगुकच्छ वादी २. सागर पंडित ४. गुणचंद्र (दिगम्बर) ६. गंगाधर ८. पद्माकरपंडित मित्रमण्डली के नाम २. प्रभानिधान हरिश्चन्द्र ५. प्राज्ञ शान्तिचन्द्र नगर काश्मीर जो इनकी इन वादों के विषय अधिकतर शैव, अद्वैत, मोक्षादि होते थे । देवसूरि का एक मित्रमण्डल था, हर प्रकार की सहायता करता था । यह मित्रमण्डल वादकला में प्रवीण एवं विद्या में पारंगत विद्वानों का बना हुआ था । १. विद्वान् विमलचन्द्र ४. कुलभूषण पार्श्वचन्द्र * 'वेदमुनी शमिते ऽब्दे ११७४ देवगुरुर्जगदनुत्तरो ऽभ्युदितः ॥७६॥ गुर्वावली पृ० ८. नागपुर गोपगरि पुष्करणी ३. पंडित सोमचन्द्र ६. महायशस्वी अशोकचन्द्र
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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