SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ] : अर्बुदगिरिस्थ श्री विमलवसति की वि० सं० १२४५ की संघयात्रा-श्रे० देसल और लापरण: [२०१ श्रे० आम्रदेव प्राग्वाटज्ञातीय अबोकुमार के पुत्र आम्रदेव ने धर्मपत्नी साणीदेवी, पुत्र आसदेव और अवेसर सहित श्री पार्श्वनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवाया । * श्रे० जसधवल और उसका पुत्र शालिग प्राग्वाटज्ञातीय शिवदेव का पुत्र जसधवल अपने परिवार सहित इस महोत्सव में सम्मिलित हुआ था । जसधवल की स्त्री का नाम लक्ष्मीदेवी और पुत्र का नाम शालिग था। पिता और पुत्र दोनों उदारमना और धर्मभक्त थे । जसधवल ने शान्तिनाथदेव का पंचकल्याणकपट्ट, उसकी स्त्री लक्ष्मीदेवी ने श्री अनन्तनाथप्रतिमा और श्री अनन्तनाथपंचकल्याणकपट्ट तथा उसके पुत्र शालिग ने अपने कल्याणार्थ श्री अरनाथप्रतिमा और अरनाथपंचकल्याणकपट्ट तथा एतदर्थ देवकुलिका करवा कर उनकी प्रतिष्ठा करवाई। * श्रे० देसल और लाषण प्राग्वाटज्ञातीय ठ० देसल और उसके लघु भ्राता लाषण ने अपने पिता और आसिणी नामा भगिनी के श्रेयार्थ श्री सुविधिनाथबिंत्र को श्री यशोदेवसरिशिष्य श्री देवचन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। * कवीन्द्र-बन्धु मन्त्री यशोवीर जाबालीपुरनरेश का मन्त्री था । इसके पिता का नाम उदयसिंह था । यशोवीर बड़ा विद्वान् और विशेषकर शिल्प-कला का उद्भट ज्ञाता था। यह भी अपने परिवारसहित इस अवसर पर अर्बुदतीर्थ के दर्शनार्थ उपस्थित हुआ था। इसने अपनी माता उदयश्री के श्रेयार्थ श्रीनमिनाथप्रतिमा और सतोरण देवकुलिका तथा अपने कल्याणार्थ श्री नमिनाथबिंब सहित सुन्दर देवकुलिका विनिर्मित करवा कर उनको श्री देवचन्द्रसूरि के कर-कमलों से प्रतिष्ठित करवाई। श्री देवचन्द्रसूरि के कर-कमलों से अन्य बिंब जैसे धर्मनाथप्रतिमा, शीतलनाथप्रतिमा, कुंथुनाथप्रतिमा, मल्लिनाथप्रतिमा, वासुपूज्यप्रतिमा, अजितनाथप्रतिमा और विमलनाथप्रतिमा तथा ठ० नागपाल द्वारा उसके पिता आसवीर के श्रेयार्थ करवाई हुई श्री नेमिनाथप्रतिमा आदि प्रतिष्ठित हुई। 1 महामात्य पृथ्वीपाल के प्रतिहार पूनचन्द्र ठ० धामदेव, उसके भ्राता सिरपाल तथा भ्रातृव्यक देसल ठ. जसवीर, धवल, ठ० देवकुमार, ब्रह्मचन्द्र, ठ० वीशल रामदेव और ठ० आसचन्द्र ने भी महाभक्तिपूर्वक श्री श्रेयांसनाथप्रतिमा श्री देवचन्द्रसूरि के हाथों प्रतिष्ठित करवाई। श्री कासहदीयगच्छीय श्री उद्योतनाचार्यसंतानीय श्री जसणाग, चांदणाग जिदा का पुत्र जसहड़ का प्रसिद्ध पुत्र पार्श्वचंद्र भी अपने विशाल कुटुम्बसहित आया था। उसने अपने प्रात्म-श्रेयार्थ श्री पार्श्वनाथबिंब की श्री उद्योतनाचार्गीय श्री सिंहसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। इस प्रकार महामात्य धनपाल द्वारा प्रमुखतः आयोजित और कारित इस प्रतिष्ठोत्सव में अनेक प्राग्वाटज्ञातीय *अ० प्रा० ० ले० सं० भा० २ ले० २६ । ११५, ११८,११६,१२१, १२२।१३२ +१० प्रा० जै० ले० सं० भा०२ ले० १५०,१५१. ० प्रा० ० ले० सं० भा०२ ले०१२४,१२६,१३०,१३४,१३७,१४१,१४२,१४४,१६३.
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy