SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: ० यशोधन वि० सं० १२१२ [ द्वितीय विक्रम की बारहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० देव हो गया है । देव के संधीरण नामक एक योग्य पुत्र था । श्रे० संधीरण का पुत्र यशोधन था । यशोधन बड़ा यशस्वी हुआ । इसके यशोमती नामा स्त्री और अम्बकुमार, गोत, श्रीधर, आशाधर और वीर नामक पाँच पुत्र થે 1 वि० सं० १२१२ ज्येष्ठ कृ० ८ कमलों से श्रे० यशोधन ने अपने पिता के और उसको श्री विमलवसतिका नाम से करवाया मंगलवार को श्रीकोरंटगच्छीय श्री नन्नाचार्य पट्टधरश्रीककसूरि के करकल्याणार्थ श्री आदिनाथविंव की महामहोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठा करवाई प्रसिद्ध श्री आदिनाथ - जिनालय के गूढ़मण्डप के गवाक्ष में स्थापित इस अवसर पर अन्य जैनज्ञातीय श्रावककुल भी उपस्थित हुये थे। जिनमें कोरंटगच्छीय नन्नाचार्यसन्तानीय श्रवंशीय वेलापल्ली वास्तव्य मंत्रि धाधुक प्रसिद्ध है । धाधुक ने आदिनाथ - समवसरण करवा कर श्री विमलवसतिका की हस्तिशाला में उसको प्रतिष्ठित करवाया । श्री अर्बुदगिरितीर्थस्थ श्री विमलवसति की संघयात्रा और कुछ प्राग्वाटज्ञातीय बन्धुओं के पुण्यकार्य । वि० सं० १२४५ श्री दातीर्थ की जो अनेक तीर्थयात्रा एवं संघयात्राओं का वर्णन जैन-इतिहास में उपलब्ध है, उनमें महामात्य पृथ्वीपालात्मज महामात्य धनपाल द्वारा की गई वि० सं० १२४५ की यात्रा का भी अधिक महत्व है । यह यात्रा कासहृदगच्छीय श्री उद्योतनाचार्यीय श्रीमसिंहसूरि के अधिनायकत्व में की गई थी । श्रीमद् यशोदेवसूरि के शिष्य श्रीमद् देवचन्द्रसूरि भी इस यात्रा में सम्मिलित हुये थे | अनेक नगरों से भी प्रतिष्ठित जैनकुल इस यात्रा में सम्मिलित हुये थे । जाबालीपुरनरेश का महामात्य श्रोसवालज्ञातीय यशोवीर भी आया था । इस यात्रा का वर्णन महामात्य पृथ्वीपाल के परिवार द्वारा किये गये निर्माणकार्य का परिचय 'प्राचीन गूर्जर - मंत्री - वंश और महामात्य पृथ्वीपाल' के प्रकरण में पूर्ण दिया जा चुका है । इस शुभावसर पर अन्य अनेक ग्रामों के अन्य प्रतिष्ठित श्रावककुल भी उपस्थित हुये थे । उन्होंने जो धर्मकृत्य किये कुछ का वर्णन इस प्रकार है: *म० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले०८, २२६
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy